दोस्त की गर्लफ़्रेन्ड को चोदने की तमन्ना

दोस्त की गर्लफ़्रेन्ड को चोदने की तमन्ना

दोस्तो, मेरा नाम राज है, मैंने अन्तर्वासना पर बहुत सी कहानियाँ पढ़ी हैं, हर एक कहानी में अलग ही अंदाज होता है।
यह तो नहीं मालूम कि कितनी कहानियां सच हैं.. कितनी नहीं.. पर लण्ड खड़ा होने में एक पल भी नहीं लगता है।

अब मैं अपनी कहानी पर आता हूँ.. जो एक वास्तविक वाकिया है और साथ ही साथ मेरी जिंदगी के हसीन पलों में से एक घटना है।
यह बात उस वक़्त की है जब मैं दिल्ली में नया-नया आया था।
दिल्ली की मस्ती ने मुझे अपने आगोश में ले लिया था।

मेरे साथ मेरा एक दोस्त अविनाश जॉब करता था। एक दिन अविनाश अपनी गर्लफ्रेंड को कमरे पर लेकर आया।
हाय.. क्या लड़की थी.. बड़ी-बड़ी नशीली आँखें.. फिगर ऐसा कि किसी का भी मन उसे देख कर डोल जाए। दिल तो मेरा भी कर रहा था कि काश इस फूल का रसपान मैं भी कर सकता.. लेकिन अफ़सोस.. वो मेरे दोस्त की गर्लफ्रेंड थी.. तो मेरे लिए ऐसा सोचना भी गलत था।

मैं अपने सही और गलत ख्यालों के बीच फंसा हुआ था कि एक प्यारी सी आवाज़ ने मेरी तन्द्रा को तोड़ा।
वो आवाज़ स्नेहा की थी।
स्नेहा.. हाँ यही नाम था उसका..
मैंने उसे ‘हैलो’ बोला.. फिर हमने कुछ देर इधर-उधर की बातें की।

थोड़ी देर बाद अविनाश ने मुझे इशारा किया और मैं कमरे से चला गया।
मेरे मन में हज़ारों ख्यालात उथल-पुथल मचा रहे थे कि अविनाश स्नेहा के साथ क्या कर रहा होगा.. वो कैसे मजे से उसकी नशीली जवानी को पी रहा होगा।

सच बताऊँ दोस्तो.. अब मुझे अविनाश से जलन होने लगी थी। इसी उधेड़बुन में फंसा हुआ मैं कब कनॉट प्लेस आ गया मुझे पता ही नहीं चला।
शाम को मैं वापिस कमरे पर गया.. तो दोनों वहाँ से नदारद थे। मैंने ड्रिंक कर रखी थी.. तो मैं सो गया।

फिर कुछ दिन ऐसे ही निकल गए, वही रूटीन सुबह ऑफिस.. शाम को कमरे पर..

एक दिन अविनाश मुझसे बोला- स्नेहा अब हमारे साथ ही रहेगी। वो अपना पीजी छोड़ रही है.. तुझे कोई प्रॉब्लम तो नहीं?
भला मुझे क्या प्रॉब्लम हो सकता थी। मेरे तो दिल के अरमान फिर से जागने लगे।

कुछ दिनों के बाद स्नेहा हमारे साथ रहने आ गई।
चूंकि हमारे पास डबल रूम सैट था.. तो हमें एडजस्ट करने में कोई प्रॉब्लम नहीं हुई। धीरे-धीरे मैं स्नेहा के साथ काफी खुल गया था। हमें साथ रहते लगभग 2 महीने हो गए थे।

एक दिन अचानक अविनाश को अपने घर जाना पड़ा.. अब घर में सिर्फ मैं और स्नेहा थे। मैं काफी खुश था कि अब मेरे और स्नेहा के बीच कोई नहीं है।
सर्दी के दिन थे, एक बार अचानक रात के 4 बजे स्नेहा मेरे कमरे में आई.

. उसने मुझे जगाया और बोली- मुझे अकेले में डर लग रहा है.. क्या मैं यहाँ सो सकती हूँ?
मैंने उसे मना नहीं किया.. वो तो सो गई लेकिन मेरी नींद उचट गई।

मैं उठ कर दूसरे कमरे में चला आया।

अगले दिन छुट्टी थी.. तो मैं देर तक सोता रहा। स्नेहा ने मुझे जगाया और चाय दी.. फिर वो मेरे साथ बैठ गई।
स्नेहा बोली- सॉरी राज.. वो रात को मुझे अकेले डर लगता है.. इसलिए मैंने तुम्हें परेशान किया।
मैंने कहा- कोई बात नहीं यार.. जब तक अविनाश नहीं आ जाता.. तुम मेरे कमरे में सो सकती हो।
स्नेहा ने मुझे हग किया और थैंक्स बोल कर चली गई।

दो रातें निकल गईं.. मैं एक अजीब सी कश्मकश में था। क्योंकि रात को सोते समय कई बार स्नेहा और मेरा बदन आपस में एक-दूसरे को छू जाते थे.. लेकिन उसने कभी भी अपने आपको मुझसे दूर करने की कोशिश नहीं की।
अब मैंने सोच लिया था कि एक कोशिश जरूर करूँगा.. अब बर्दाश्त से बाहर हो रहा था।

रात के वक़्त हम दोनों टीवी देख रहे थे.. स्नेहा बिल्कुल मेरे से सट कर बैठी थी। टीवी देखते-देखते स्नेहा सो गई। मैंने भी कुछ देर बाद टीवी बंद किया और सो गया.. लेकिन मेरी आँखों में नींद कहाँ थी।
मुझे स्नेहा के शरीर की गर्मी का एहसास हो रहा था.. जोकि मुझे पागल बना रहा था।

कुछ देर बाद जब मुझे लगा कि स्नेहा गहरी नींद में है.. तो मैंने अपना एक हाथ उसके बदन से सटा दिया।

जब उसकी तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई.. तो मैं निश्चिन्त हो गया। मैंने धीरे से अपना एक पैर भी स्नेहा के पैर से सटा दिया.. लेकिन वो अब भी बिल्कुल शांत रही। इस वजह से मेरी हिम्मत बढ़ गई, अब मैंने स्नेहा की तरफ करवट ली और उससे बिल्कुल सट गया।

थोड़ी देर ऐसे ही रहने के बाद मैंने अपना हाथ स्नेहा के उरोजों पर रख दिया। मैं ये सब कर भी रहा था.. लेकिन दोस्तों मेरी बुरी तरह से फट भी रही थी कि कहीं स्नेहा मुझे कुछ कह ना दे। मेरा लिंग अब अपने पूरे उफान पर था.. तभी मेरे दिमाग में एक आईडिया आया और मैंने अपना अंडरवियर उतार कर दुबारा से बरमूडा पहन लिया और दुबारा से स्नेहा के साथ सट कर लेट गया।

स्नेहा टी-शर्ट और लोअर डाल कर सो रही थी, उसकी टी-शर्ट शॉर्ट थी.. तो थोड़ा ऊपर उठी हुई थी।
मैंने अपना हाथ बिल्कुल उसकी नाभि के पास रखा.. जहाँ से टी-शर्ट ऊपर उठी हुई थी। मैंने धीरे-धीरे अपना हाथ स्नेहा की योनि की तरफ बढ़ाया और लोअर के ऊपर से ही उसे दबाने लगा.

. स्नेहा थोड़ी कसमसाई लेकिन उसने विरोध नहीं किया।

मैंने अपना हाथ धीरे से उसकी पैंटी के अन्दर डाल दिया और अपने लिंग का दबाव उसकी गाण्ड पर बढ़ाने लगा। स्नेहा अब कसमसाने लगी और उसने मेरी तरफ करवट ली.. लेकिन उसकी आँखें बंद थीं.. शायद नींद में होने का नाटक कर रही थी। मेरी हिम्मत अब बढ़ गई थी। मैंने उसका लोअर और पैंटी नीचे सरका दी और उसकी योनि का मर्दन अपनी उंगली से करने लगा।

मैंने उसकी टी-शर्ट को ऊपर उठा दिया और ब्रा को ऊपर करके उसके उरोज को मुँह से चूसने लगा। इन सब में एक बात तो पक्की थी कि वो नींद में नहीं थी.. लेकिन मुझे क्या मुझे तो जन्नत मिल रही थी।

मैंने स्नेहा का हाथ पकड़ कर अपने बरमूडा के ऊपर रख दिया.. वो ऊपर से ही मेरे लिंग को दबाने लगी। मेरा दिल था कि वो मेरा लिंग अपने हाथ में ले लेकिन वो सिर्फ ऊपर से ही उसे दबा रही थी।
मैंने धीरे से बरमूडा को नीचे सरका दिया, अब मेरा लिंग स्नेहा के हाथ में था, वो उसे मसल रही थी।
इतना सब कुछ हो रहा था लेकिन उसने अपनी आँखें नहीं खोलीं।

दोस्तो, मैं तो जन्नत की सैर कर रहा था.. बारी-बारी से मैं स्नेहा के उरोजों को चूसे जा रहा था और अपनी उंगली से उसकी योनि का मर्दन कर रहा था।
उसका हाथ भी मेरे लिंग के साथ पूरे जोर-शोर से खेल रहा था।

मैं अपना मुँह धीरे-धीरे नीचे करने लगा और मैंने अपने होंठ स्नेहा की योनि के होंठों से मिला दिए। मेरी इस हरकत से स्नेहा और भी ज्यादा कसमसाने लगी और उसके मुँह से आवाजें निकलने लगीं।
अचानक थोड़ी देर बाद स्नेहा ने मुझे अपने से दूर कर दिया और उठ कर दूसरे कमरे में चली गई।
मेरी तो फट गई कि दोस्त भी गया और कुछ कर भी नहीं पाया।

मैंने सोचा जो होना था हो गया अब सुबह उससे माफ़ी मांग लूंगा। अगले दिन सुबह उठा तो स्नेहा अपनी स्टडी के लिए जा चुकी थी। नहा-धोकर जब रसोई में गया.. तो चाय और नाश्ता बना हुआ रखा था.. देख कर दिल को कुछ सुकून मिला।

मैंने उस दिन अपने ऑफिस से छुट्टी ली और सारा दिन घर पर ही रहा। शाम को स्नेहा के पहले मैंने मार्किट से खाना मंगवाया।
शाम को स्नेहा आई लेकिन उसने मुझसे कोई बात नहीं की।
मैंने उससे बोला- खाना मैंने मंगवा लिया है.. लेकिन तब भी उसने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी।

खाना खाने के दौरान भी उसने मुझसे कोई बात नहीं की।
अब मुझे उस पर गुस्सा आने लगा था, मैंने उसे एक बार फिर ‘सॉरी’ बोला.

. लेकिन कोई जवाब नहीं..

अब मुझसे रहा नहीं गया मैंने स्नेहा का हाथ पकड़ा और उससे बोला- यार मुझसे गलती हो गई.. लेकिन मैं अपनी गलती पर शर्मिंदा हूँ। मैं क्या करता तुम हो ही इतनी खूबसूरत कि मैं खुद पर कंट्रोल नहीं कर पाया।

इतना कह कर मैं घर से बाहर चला गया और देर रात को लौटा। घर आकर देखा तो स्नेहा जाग रही थी.. मुझे देखकर उसने मुझे फटकारना शुरू कर दिया- क्या तुम्हें पता नहीं है कि घर में मुझे अकेले डर लगता है और ऊपर से तुमने अपना फ़ोन भी बंद कर रखा है।

मैंने उसे ‘सॉरी’ बोला और कमरे में जाकर लेट गया।
थोड़ी देर बाद स्नेहा मेरे पास आई और लेट गई। मैं कुछ समझ नहीं पाया.. स्नेहा ने मेरी तरफ करवट ली और बोला- इट्स ओके राज..

मैंने स्नेहा को हग किया और माफ़ करने के लिए ‘थैंक्स’ बोला। मेरा और स्नेहा का चेहरा बिल्कुल एक-दूसरे के सामने था। एक अजीब कशमकश थी हम दोनों की आँखों में..
मैंने स्नेहा के सर पर हाथ फेरा और उसकी आँखों में देखा.. लगा शायद ये भी वही चाहती है.. जो मैं चाहता हूँ।
स्नेहा थोड़ा मेरे करीब आ गई.. मैंने उसके बालों में हाथ फिराना शुरू कर दिया।

हम दोनों को एक-दूसरे की सांसें अपने अपने चेहरे पर महसूस हो रही थीं। मैंने धीरे से अपने होंठ स्नेहा के होंठों पर रख दिए और उसके होंठों का रसपान करने लगा.. वो भी बिना किसी विरोध के मेरा साथ देने लगी।

मैंने उसकी पीठ पर हाथ फिराते हुए उसकी ब्रा का हुक खोल दिया और उसकी टी-शर्ट और ब्रा दोनों को उतार दिया।

मैं उसके उरोजों के निप्पल को चूसने लगा। स्नेहा के हाथ भी मेरे बदन पर रेंग रहे थे। मैंने अपनी टी-शर्ट उतारी और बरमूडा भी बदन से अलग कर दिया। उसके बाद मैंने स्नेहा के लोअर और उसकी पैंटी को भी उतार दिया। अब मेरा एक हाथ स्नेहा की योनि पर था.. और उसका हाथ मेरे लिंग पर था।

हम दोनों एक-दूसरे के अंगों का मर्दन कर रहे थे। फिर मैं 69 की पोजीशन में आ गया.. मैंने उसकी योनि के रस को अपने होंठों से पीना शुरू कर दिया और उसने मेरे लिंग के रस का स्वाद लेना शुरू कर दिया।

तक़रीबन 15 मिनट के अन्दर हम दोनों स्खलित हो गए। इसके बाद स्नेहा ने मुझे अपनी बाँहों में भर लिया और वो मेरे लिंग से खेलने लगी। थोड़ी देर के बाद शिकारी फिर से शिकार करने के लिए रेडी हो गया।

मैंने स्नेहा को चुम्बन करना शुरू किया और उसके ऊपर आ गया। अपने लिंग को उसके योनि के ऊपर सटा दिया और अन्दर की तरफ ठेल दिया.

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लिंग के अन्दर जाते ही उसके मुँह से चीख निकली।

मैं कुछ देर वैसे ही रहा और उसके थनों को चूसता रहा। फिर उसके बाद मैंने लिंग को अन्दर-बाहर करना शुरू कर दिया। वो भी उछल-उछल कर मेरा साथ देने लगी। थोड़ी देर बाद मैंने अपनी पोजीशन चेंज कर ली.. अब मैं नीचे था और स्नेहा ऊपर।

उसने मेरे लिंग को अपने हाथ से पकड़ा और अपनी योनि से सटा कर उस पर बैठ गई और ऊपर-नीचे होने लगी। तक़रीबन 20 मिनट के अन्दर उसकी योनि ने रस-वर्षा कर दी और इस रस- वर्षा की गर्मी के कारण थोड़ी देर बाद मैं भी स्खलित हो गया।

उस रात हमने दो बार सेक्स किया। कुछ दिन हमने बहुत मजे किए.. लेकिन उसके बाद अविनाश वापिस आ गया.. फिर कहानी दूसरी तरफ मुड़ गई।

स्नेहा अब भी मेरे साथ आ जाती थी पर ये सब कैसे हुआ.. उसके बाद हमने कैसे-कैसे मजे लिए ये मैं आपको अगली बार बताऊँगा।

मेरी कहानी कैसी लगी जरूर बताइएगा। आपके सुझाव और प्रतिक्रियाओं का इंतज़ार रहेगा।
आपका राज
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