चिरयौवना साली-26

चिरयौवना साली-26

लेखिका : कमला भट्टी

अब वे तूफानी गति से धक्के लगा रहे थे कि अचानक कालबेल बज उठी !

मैं और जीजाजी दोनों चौंक पड़े। मैंने धीरे से जीजू से पूछा- कौन हो सकता है?

जीजाजी ने मुझे हाथ से सहला कर आश्वस्त करते हुए अपने कमर पर लुंगी लपेटी और दरवाज़े के पास चले गए। मैंने भी पास पड़ा कम्बल मुँह तक ढक लिया और सो जाने का दिखावा करती दम साधे लेट गई।

जीजाजी ने झटके से सिटकनी खोली और देखा तो वेटर था। उन्होंने पूछा- क्या है?

वो बोला- मैं चाय के बर्तन लेने आया हूँ।

जीजाजी ने अपने गुस्से पर काबू पाते हुए कहा- बर्तन तो पहले ही कोई वेटर ले गया है !

वेटर ने भांप लिया की गलत समय पर दरवाज़ा खटखटा दिया है। हालाँकि समय तो नौ सवा नौ ही हुआ था पर जीजाजी के हाव-भाव और कमर के ऊपर का नंगा बदन देखा कर वो समझ गया था इसलिए उसने फटाफट माफ़ी मांग ली।

जीजाजी ने कहा- कोई बात नहीं !

और फिर से दरवज़ा बंद कर लिया और सिटकनी लगा कर फिर से पलंग पर आ गए, बोले- साले ने सारे मूड की माँ चोद दी ! मादरचोद कप क्या अपनी माँ की गाण्ड में डालेगा?

मेरे कान वैसे भी दरवाज़े पर ही लगे हुए थे और आपको पता ही है एक अपराधबोध के साथ होटल में रुकते हैं। हालाँकि यह काफी अच्छा और महंगा होटल है पर मन में पुलिस की रेड का डर लगा रहता है कि कहीं बदनाम न हो जाएँ ! कहीं मिडिया वाले खबर ना छाप दें कि जीजा-साली रंगरेलियाँ मनाते पकड़े गए !

क्यूंकि जीजाजी के ड्राइविंग लाइसेंस की फोटो कोपी की पहचान से तो कमरा मिलता है, उसमें सब नाम पते होते हैं और साथ में मेरा मिलना भगवान बचाए ऐसी परिस्थिति से ! खैर यह बात हुई नहीं थी पर जीजाजी का बैठ गया था, वे अपनी लुंगी लपेटे ही मेरे पास कम्बल में लेट गए थे। बोले- यार, मेरी मेहनत बेकार गई ! अब फिर से तुम्हें काफी देर परेशान होना पड़ेगा, तब मेरे पानी छुटेगा, अभी तो यह वापिस ऊपर चढ़ गया है !

मैंने कहा- आप परेशान मत हो, हमारी कौन सी गाड़ी छूट रही है ! हमारे पास तो सारी रात है, अब मैं कुछ करती हूँ, आप सीधे सीधे लेट जाओ !

मेरे इतना कहते ही उनके चेहरे पर मुस्कराहट आ गई और वे सीधे लेट गए, मैं बैठ गई और धीरे से उनकी लुंगी हटा दी, उनके लण्ड पर धीरे धीरे हाथ फेरने लगी और वो अंगड़ाई लेने लगा। मैं उस पर सावधानी से मुठ्ठिया दे रही थी ताकि फिर से उन्हें दर्द ना हो जाये !

थोड़ी देर में उनका लण्ड फिर से तन्ना रहा था, जीजाजी मुझे देख रहे थे कि अब क्या करेगी !

मैंने वहाँ पड़ी पोंड्स की डिब्बी खोली और काफी क्रीम उनके लण्ड के ऊपर लगाई और फिर अपनी चूत के छेद पर लगाई और जीजाजी की झांघों पर बैठ गई !

फिर कुछ सोच कर मैंने अपनी पीठ जीजाजी की तरफ कर ली ताकि मुझे उनके सामने नहीं देखना पड़े क्यूंकि जब वे देखते है तो मुझे शर्म आती है।

दूसरी बात उल्टा बैठने पर लण्ड चूत में अच्छी तरह से जाता है और उनका कुछ छोटा लण्ड भी गहराई में पहुँचेगा और चुदाई में अचानक बाहर निकाल कर मेरे चूत की चमड़ी को क्षति ग्रस्त नहीं करेगा।

मैं उकड़ु बैठ कर थोड़ी ऊपर होकर लण्ड के सुपारे को चूत के छेद पर हिला हिला कर एडजस्ट कर रही थी, फिर सही जगह अटका कर मैंने हल्का सा धक्का मारा तो थोड़ा दर्द हुआ मुझे। जीजाजी का चेहरा तो दिख नहीं रहा था, मुझे तो सामने की दीवार और सोफा टेबल दिख रही थी पर जीजाजी की मादक आह सुनकर पता चल गया कि उन्हें भी मज़ा आ रहा है !

अब मैंने यह पता लगा लिया कि चाहे छुरी खरबूजे पर गिरे अथवा खरबूजा छुरी पर, कटना खरबूजे को ही है ! यानि मर्द लण्ड डाले या औरत ऊपर चढ़ कर डलवाए, दर्द तो औरत को ही होगा ! पर उस दर्द की मंजिल आनन्द होती है, मुझे चुदाने पर जो आनन्द मिलता है तो मैं कई बार जीजाजी से पूछती हूँ- आपको भी आनन्द आता है/

वे हाँ बोलते हैं तो मुझे बड़ा अचम्भा आता है कि इन्हें आनन्द कैसे आता है, हमारे तो उस वक़्त खुजली होती है जिसे वे उस डंडे से खुजाते हैं, इन्हें क्या मज़ा आता होगा।

जीजाजी कहते- हम मेहनत कर मज़ा लेते हैं, तुम तो आराम से लेट के आनन्द लेती हो, हम अपने कूल्हे चलाते हैं इस आनन्द के लिए।

तो आज मैं भी अपने कूल्हे चला कर मेहनत का आनन्द लेने की कोशिश कर रही थी !

मैंने एक ठाप और मारी और उनका लण्ड आधे से ज्यादा गुस गया। एक लम्बी साँस लेकर मैंने फिर थोड़ा बाहर निकाल कर कूल्हे का झटका दिया तो जड़ तक अन्दर घुस गया। मैंने लम्बी लम्बी सांसें ली, जीजाजी नीचे से कुछ हिल रहे थे, मैंने उनकी टांगों के बीच की खाली जगह पर अपना सर टिका दिया और पलंग पर घुटने टिका दिए, पैर के पंजे जीजाजी की कमर की तरफ कर दिए और फिर जीजाजी को खपाखप चोदने लगी।

मुझे जैसे जूनून चढ़ गया था, मेरी रफ़्तार बहुत तेज़ हो गई थी, जीजाजी के मुँह से मेरी तारीफ निकलने लगी और उनके हाथ मेरी ऊँची नीची होती गाण्ड पर फिरने लगे !

पर मेरी चोदने की रफ़्तार बस दो मिनट ही चली थी, मैं हांफने लगी थी और अब घिसट-घिसट कर धक्के लगा रही थी।

जीजाजी ने थोड़ी देर तक तो नीचे से उछल उछल कर मेरा साथ दिया पर ऊपर चढ़ा हुआ बल्लेबाज़ तो हर गेंद पर टिक कर रहा था, एक भी शॉट नहीं मार रहा था इसलिए थोड़ी देर में ही उन्होंने कहा- अब उतर जाओ ! हो गई तुमसे चुदाई ! लड़का होती तो कोई तुझसे चुदती ही नहीं। साली इतनी सी देर में थक गई !

मैंने कोई जबाब नहीं दिया, कोई जबाब था ही नहीं मेरे पास और मुस्कुरा कर वहीं उलटी लेट गई !

जीजाजी मेरे नीचे से निकल गए थे अभी तक मैं थकान के कारण उनके पैरों की तरफ मुँह करके उलटी ही लेटी हुई थी ! फिर जीजाजी ने मेरे कूल्हों पर थाप देकर उन्हें उठाने को कहा।

मैं उनका इशारा समझ गई कि अब वे मुझे घोड़ी बनाना चाहते हैं, वे घुटनों के बल बैठे हुए थे और उनका अतृप्त लण्ड सीधा खड़ा होकर झटके खा रहा था ! मैं वहीं पीछे से थोड़ी उठ कर घुटनों के बल हो कर घोड़ी बन गई, उनकी अंगुलियाँ मेरी चूत की फांकों को अलग अलग कर रही थी। फिर उन्हें उनके बीच में थोड़ी जगह मिल गई वहाँ उन्होंने अपना लण्ड फंसा दिया और मेरी पतली कमर अपने दोनों हाथों में थाम ली और अपनी कमर को हरकत दी, उनका लण्ड जो अभी तक पोंड्स क्रीम से चिकना हो रहा था, आसानी से अन्दर घुस गया। अब मेरी चूत रवां हो गई थी इसलिए मुझे कोई दर्द महसूस नहीं हो रहा था !

उनकी गति बढ़ती जा रही थी, मेरे पीछे चोट लग रही थी जो हम औरतों की नियति है मार खाने की ! पर इस मार में आनन्द ही आनन्द था ! वे मेरी कमर को बुरी तरह दबोच कर धक्के मार रहे थे और साथ ही पीछे भी उस समय खींच लेते जब उनका पिस्टन अन्दर जाता ! तब वे मेरी कमर को खींच कर मेरी चूत को अपने लण्ड से बुरी तरह टकराते और उनका लण्ड जड़ तक जाकर मेरे बच्चेदानी के मुँह से टकराता और उसके दो दोस्त मेरी गुदा से टकरा कर जैसे टंकार बजाते ! जब मेरी गुदा से उनकी गोलियाँ स्पर्श होती तो मैं उनके पूरे लण्ड को अपनी चूत में महसूस कर आनन्दित होती !

अब उनकी गति बहुत तेज़ हो गई थी, मैं भी अपनी गाण्ड को पीछे कर उन्हें सहयोग दे रही थी। अब जब मैं खुद अपनी गाण्ड को उनके धक्के के समय पीछे कर रही थी तो उन्होंने भी कमर को छोड़ दिया था और मेरे कूल्हों पर प्यार से हाथ फेर रहे थे !

मुझे भी आनन्द आ रहा था और मैं झड़ने लगी थी, मेरे झड़ने का जीजाजी को पता चल गया था, अब वे पागलों की तरह मुझे चोद रहे थे और मुझे झड़ते वक़्त वही अंदाज़ चाहिए था।

मेरी मुठ्ठी में पलंग की चादर कसी हुई थी जो अस्त-व्यस्त हो रही थी, होनी ही थी, पलंग पर तो जैसे फ्री स्टाइल कुश्ती हो रही थी या कोई कबड्डी का मैच हो रहा था जैसे ! जीजाजी ने अपना लण्ड बाहर निकाल कर कंडोम पहन लिया था अब मुझे फिर से चुदते 15 मिनट हो गए थे और जीजाजी के मुँह से अनर्गल आवाजें निकल रही थी जो उनके छूटने के लक्षण थे और यही मैं भी चाहती थी। मेरी चूत में अब दर्द होना शुरू हो गया था इतनी देर के घर्षण से जो साले उस वेटर ने बीच में कालबेल बजा कर बढ़ा दिया था !

पर अब मेरी जान में जान आने वाली थी, उनके नहीं आने तक तो मैं उन्हें रोक नहीं सकती थी, कटखने कुत्ते की तरह करते हैं अगर उस वक़्त बोल जाओ तो !

मैं सिर्फ आअ….

आअ…. दुखे.. रीईईईए… म्हारो भोश्यो छुल गो र्र्र्रर्र्र्रे…..कर रही थी जो उनकी उत्तेजना को बढ़ा रही थी और वे मेरी चूत से मुँह तक लण्ड बाहर निकाल कर एक झटके में पूरा ठूंस रहे थे।

फिर उनके शरीर ने झटका खाया, उन्होंने धीरे धीरे 5-6 धक्के मारे और अपना कंडोम हटाया उसमें गांठ लगाई और दराज़ में डाल दिया। मैं वहीं सो गई, मुझ में सीधी होने की हिम्मत भी नहीं थी।

जीजाजी बाथरूम में लण्ड धोने चले गए थे। वापिस आकर मुझे उठाया बाथरूम में जाने के लिए और मैं भी बाथरूम में घुस गई अपनी मुनिया को धोने और पेशाब करने के लिए जो दर्द के कारण मुश्किल से उतर रहा था !

फिर हम साथ में लेट कर बाते करने लगे ! मैं भी बहुत बातूनी हूँ और जीजाजी तो अच्छे वक्ता हैं ही ! मैं तो बकवास ज्यादा करती हूँ, जितना बोलती हूँ उससे ज्यादा हंसती हूँ पर जीजाजी का सामान्य ज्ञान बहुत अच्छा है, वे किसी भी विषय पर बोल सकते हैं !

कहानी जारी रहेगी।