तेरी याद साथ है-10

तेरी याद साथ है-10

प्रिया ने भी मेरे होंठों पर अपने होंठ रख दिए और चूमते हुए कहा,”ठीक है मेरे स्वामी, अब मैं जाती हूँ। लेकिन कल हम अपना अधूरा काम पूरा करेंगे।” और मुझे आँख मार दी।

उसने अपनी किताबें और नोट्स उठा लीं और जाने लगी। जाते जाते वो मुड़ कर मेरे पास वापस आई और बिना कुछ बोले झुक कर मेरे लण्ड पर पैंट के ऊपर से एक पप्पी ली और हंसते हुए भाग गई।

उसकी इस हरकत पर मैं हस पड़ा और अपन दरवाज़ा बंद कर लिया। इस जोश भरे खेल के बाद मैं थक चुका था और आंटी के देखने वाली बात से डर गया था।

मैंने लाइट बंद की और कंप्यूटर भी बंद करके अपने बिस्तर पर गिर पड़ा। डर की वजह से नींद तो आ नहीं रही थी लेकिन फिर भी मैंने अपनी आँखें बंद की और सुबह होने वाले ड्रामे के बारे में सोचते सोचते सो गया…

सुबह जल्दी ही मेरी आँख खुल गई। बहुत फ्रेश फील कर रहा था मैं। शायद कल रात के हुए उस हसीं खेल का असर था। बिस्तर पे लेटे-लेटे ही मेरी आँखों के सामने वो हर एक पल नज़र आने लगा।

मैं मुस्कुरा उठा और फिर अपने बाथरूम की तरफ चल पड़ा।

घर में सब कुछ सामान्य था। सब लोग अपने अपने काम में लगे हुए थे। मैं नहा धोकर अपने रूटीन के अनुसार छत पर पूजा करने और सूरज देवता को जल अर्पित करने गया। यह मेरा रोज़ का काम था। छत पर सिन्हा आंटी कपड़े डालने आई हुईं थीं। उन्हें देखते ही मेरी हवा निकल गई और मुझे वो दृश्य याद आ गया जब मेरे और प्रिया के खेल को किसी ने खिड़की से देखा था।

मुझे पूरी पूरी आशंका इसी बात की थी कि वो आंटी ही थीं क्यूंकि मुझे पायल की आवाज़ सुनाई दी थी और सीढ़ियों से ऊपर चढ़ने की आवाज़ भी सुनी थी मैंने।

मेरे अन्दर का डर जो अब तक कहीं गुम था अचानक से सामने आ गया और मेरा दिल जोर जोर से धड़कने लगा, मुझे लगा कि अब तो मैं गया और आंटी मेरी अच्छी खबर लेंगी।

मैं डरते डरते आगे बढ़ा और अपने हाथ के लोटे से सूरज को जल अर्पित करने लगा, यकीन मानिए कि मेरे हाथ इतने काँप रहे थे कि मेरे लोटे से जल गिर ही नहीं रहा था। जैसे तैसे मैंने पूजा की और वापस मुड़ कर जाने लगा। तब तक आंटी ने सारे कपड़े सूखने के लिए डाल दिए थे।

कपड़े धोने और सुखाने के क्रम में सिन्हा आंटी की साड़ी नीचे से थोड़ी गीली हो गई थी जिसे उन्होंने अपने हाथों से निचोड़ने के लिए हल्का सा ऊपर उठाया और अपने हाथों में लेकर निचोड़ने लगी। मेरा ध्यान सीधे उनके पैरों पर गया और यह क्या?

मैं तो जैसे स्तब्ध रह गया। यह कहानी आप अन्तर्वासना.

कॉम पर पढ़ रहे हैं।

सिन्हा आंटी के पैर तो बिल्कुल खाली पड़े थे। मतलब उनके पैरों में तो पायल थी ही नहीं।

मैं चौंक कर एकटक उनकी तरफ देखने लगा। मेरा दिमाग जल्दी जल्दी न जाने क्या क्या कयास लगाने लगा। मैं कुछ भी नहीं समझ पा रहा था।

तभी आंटी ने मेरी ओर देख कर एक हल्की सी स्माइल दी जैसा कि वो हमेशा करती थीं और अपनी साड़ी ठीक करके नीचे उतर गईं।

मैं उसी अवस्था में छत की रेलिंग पर बैठ गया और सोचने लगा कि अगर रात को आंटी नहीं थीं तो और कौन हो सकता है? वो भी पायल पहने हुए !

मैं चाह कर भी किसी नतीजे पर नहीं पहुँच पा रहा था। हार कर मैं नीचे उतर गया और अपने कमरे में जाकर थोड़ी देर के लिए टेबल पे बैठकर अनमने ढंग से कंप्यूटर ऑन करके सोच में पड़ गया।

एक तरफ मैं खुश था कि चलो आंटी से बच गया पर आखिर वो कौन हो सकती थी।

तभी मेरी नेहा दीदी ने मुझे आवाज़ लगाई और सुबह के नाश्ते के लिए ऊपर चलने को कहा।

मैंने अपना कंप्यूटर बंद किया और उनके साथ ऊपर चला गया। आंटी किचन में थीं और रिंकी उनके साथ उनकी मदद में लगी हुई थी। मैं और नेहा दीदी खाने की मेज पर बैठ गए। मेरी नज़रें प्रिया को ढूंढ रही थीं। पता चला कि वो बाथरूम में है और नहा रही है।

मैं वापस अपनी उलझन में खो गया और उसी बात के बारे में सोचने लगा।

अचानक से मेरे कानों में वही आवाज़ पड़ी… वही पायल की आवाज़ जो कल रात सुनी थी। मैंने हड़बड़ा कर अपना ध्यान उस आवाज़ की तरफ लगाया और मेरे आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा।

रिंकी अपने हाथों में नाश्ते का प्लेट लेकर हमारी तरफ आ रही थी और उसके कदमों की हर आहट के साथ उसी पायल की आवाज़ आ रही थी। मेरी नज़र सीधे उसके पैरों की तरफ चली गई और मेरी आँखों के सामने उसके पैरों में बल खाते पायल नज़र आई।

थोड़ी देर के लिए तो मैं बिल्कुल जम सा गया…तो वो आंटी नहीं रिंकी थी जिसने कल हमारा खेल देखा था।

हे भगवन…यह क्या खेल खेल रहा था ऊपर वाला मेरे साथ..!!!

रिंकी की आँखें मेरी आँखों में ही थीं और उसकी आँखों में एक चमक थी और चुहलपन भी था। कुछ न कहते हुए भी उसकी आँखों ने मुझसे सब कुछ कह दिया था। मैंने अपनी आँखें झुका लीं और सहसा मेरे अधरों पे एक मुस्कान उभर आई। मैंने फिर से अपनी नज़र उठाई तो पाया कि रिंकी नेहा दीदी के बगल में बैठ कर मुझे देखकर मुस्कुराये जा रही थी।

मैंने राहत भरी सांस ली, मेरी उलझन दूर हो गई थी। मैं इस बात से खुश था कि मुझे डरने की कोई जरुरत नहीं है क्यूंकि अब हम दोनों एक दूसरे का राज़ जान गए थे।

तभी प्रिया अपने कमरे से नहाकर बाहर आई और दरवाज़े के पास से ही मुझे आँख मार दी। आज उसके चेहरे पे एक अलग ही ख़ुशी झलक रही थी और आँखे चमक रही थीं। उसके बाल गीले थे और उनसे पानी की बूँदें टपक टपक कर उसके टॉप को भिगो रही थी।

क़यामत लग रही थी वो लाल रंग के टॉप और काले रंग की शलवार में ! दिल में आया कि अभी जाकर उसको अपनी बाहों में ले लूँ और उसके होंठों को चूम लूँ। पर मैंने अपने जज्बातों पे काबू किया और चुपचाप उसे एक प्यारी सी स्माइल देकर नाश्ता करने लगा।

अब तक सारे जने खाने की मेज पे आ गए थे और हम सब एक दूसरे से बातें करते हुए अपना अपना नाश्ता ख़त्म करने लगे।

नाश्ते के बीच में हम सबने अपन अपना प्रोग्राम शेयर किया। नेहा दीदी और आंटी अपने पहले से बनाये हुए प्लान के अनुसार थोड़ी देर में बाज़ार जा रही थीं, प्रिया अपने कॉलेज और रिंकी ने कहा कि वो अपनी सहेली के घर जाएगी कुछ काम से और थोड़ी देर में वापस आ जाएगी।

मैंने यह बताया कि पप्पू अभी थोड़ी देर में आएगा और हम दोनों को साक्ची (जमशेदपुर का एक बाज़ार) जाना है कुछ किताबें खरीदने के लिए।

हम सब अपने अपने प्रोग्राम की तैयारी में लग गए। नेहा दीदी और आंटी सबसे पहले तैयार होकर बाज़ार के लिए निकलने लगीं। उनके जाने के बाद प्रिया नीचे उतर आई और मेरे कमरे में आकर मुझसे पीछे से लिपट गई। मैं अचानक से इस तरह से लिपटने से चौंक पड़ा पर जब प्रिया ने पीछे से मेरे गालों को चूमा तो मैं खुश हो गया और उसे अपनी तरफ मुड़ा कर उसको जोर से अपनी बाहों में भर लिया।

उसने वही लाल टॉप पहना हुआ था, लेकिन नीचे शलवार की जगह डेनिम की एक स्कर्ट पहन ली थी। बालों को खुला छोड़ रखा था और होंठों पे सुर्ख लाल लिपस्टिक लगा ली थी। चेहरे पे हल्का सा मेकअप।

कुल मिलकर पूरी माल लग रही थी। चूचियों को ब्रा में कैद किया था उसने जिसकी वजह से उसकी चूचियाँ हिमालय की तरह खड़ी हो गईं थीं। जब उसे मैंने अपने सीने से लगाया तो उसकी प्यारी चूचियों ने मेरे सीने को प्यार भरा चुम्बन दिया और मुझे अन्दर तक सिहरन से भर दिया।

मैंने अपने हाथ बढ़ाकर उसकी चूचियों पे रखा और प्यार से सहला दिया। उसने मस्ती में आकर अपनी आँखें बंद कर लीं और लम्बी लम्बी साँसें लेने लगी।

मेरे दिमाग में यह ख्याल था कि उसे कॉलेज जाना है इसलिए मैंने उसकी चूचियों को दबाया नहीं वरना उसके टॉप पे निशान पड़ जाते और उसे शर्मिंदगी उठानी पड़ती। इस बात का एहसास उसे भी था और मेरी इस बात पे उसे प्यार आ गया और उसने एक बार फिर से अपने होंठों को मेरे होंठों पे रख दिया और लम्बा सा चुम्बन देकर मुझसे विदा लेकर चली गई।

मैं उसे बाहर तक जाते हुए देखता रहा और हाथ हिलाकर उसे टाटा किया। मेरा मन बहुत खुश था, मैं अपनी किस्मत पे फख्र महसूस कर रहा था कि प्रिया जैसी चंचल और शोख हसीना मेरी बाहों में आ चुकी थी और वो मेरी छोटी छोटी बातों से मुझसे बहुत प्रभावित रहती थी।

प्रिया के जाने के बाद मैं अपने कमरे में बैठ कर अपने दोस्त पप्पू का इंतज़ार करने लगा। मैं जानता था कि आज तो वो दुनिया की हर दीवार तोड़ कर जल्दी से जल्दी मेरे घर पहुँचेगा और अपनी अधूरी प्यास पूरी करेगा।

मैं मन ही मन कभी प्रिया कभी रिंकी के बारे में सोच सोचकर मुस्कुरा रहा था और कंप्यूटर पे अपनी मनपसंद साइट्स चेक कर रहा था।

थोड़ी देर ही बीती थी कि मेरे घर के फ़ोन पे एक कॉल आई। मैंने उठाकर हेलो किया तो दूसरी तरफ से पप्पू की आवाज़ आई।

“सोनू, मेरे भाई…एक हादसा हो गया है।”…पप्पू ने हड़बड़ाते हुए कहा।

“क्या हुआ पप्पू ?”…मैंने भी हड़बड़ा कर पूछा।

“यार, मेरे मामा जी का एक्सीडेंट हो गया है और मुझे अभी तुरंत अपने मम्मी पापा के साथ रांची जाना पड़ेगा। मैं आज नहीं आ सकूँगा। तू अकेले ही किताबें लेने चले जाना।” पप्पू ने एक सांस में ही सब कुछ कह दिया।

उसकी आवाज़ में मुझे एक दर्द और चिंता का आभास हुआ। मैंने उसे हिम्मत देते हुए कहा,”कोई बात नहीं मेरे दोस्त, तू घबरा मत, मामा जी को कुछ नहीं होगा। तू आराम से जा और वहाँ पहुँच कर मुझे बताना।”

मैंने इतना कहा और पप्पू ने फ़ोन रख दिया।

मैं थोड़ी देर के लिए उसके मामा जी के बारे में सोचने लगा और भगवान् से प्रार्थना करने लगा की सब कुछ अच्छा हो।

अपनी इसी सोच में बैठे बैठे थोड़ी देर के बाद मुझे एक आहट सुनाई दी। मैंने देखा तो रिंकी हस्ते हुए मेरी तरफ देख रही थी। वो अभी अभी सीढ़ियों से उतर कर मेरे कमरे के सामने पहुँची थी। उसने सफ़ेद रंग का शलवार सूट पहना हुआ था और लाल रंग का दुपट्टा लिया हुआ था। बिल्कुल पंजाबी माल लग रही थी। मैंने नज़र भर कर उसकी ओर देखा और एक ठण्डी आह भरी।

वो मेरे कमरे के दरवाज़े पे आई और धीरे से मुझसे कहा, “मैं थोड़ी देर में चली आऊँगी। तुम कब तक वापस आओगे?”

मुझे पता था कि वो मेरे बारे में नहीं बल्कि पप्पू के बारे में जानना चाहती थी। उसे पता था कि मैं पप्पू के साथ बाज़ार जा रहा हूँ और फिर उसके साथ ही वापस आऊँगा…और फिर उन दोनों की अधूरी प्यास पूरी हो जायेगी।

पता नहीं मुझे क्या हुआ लेकिन मैंने उसे यह नहीं बताया कि पप्पू के मामा जी का एक्सीडेंट हुआ है और वो रांची चला गया है। मैंने बस मुस्कुरा कर उसकी तरफ देखा और अपनी एक आँख मार कर कहा,”हम भी जल्दी ही वापस आ जायेंगे।”

मेरे आँख मरने पर उसने एक स्माइल दी और अपना सर झुका कर तेज़ क़दमों से चल कर बाहर निकल गई।

अब मैं अपने कमरे में अकेला यह सोचने लगा कि अब मैं क्या करूँ। पप्पू था नहीं इसलिए बाहर जाने का दिल नहीं था। मैंने अपना कंप्यूटर चालू किया और लगा सेक्सी फ़िल्में देखने। टेबल पे तेल की बोतल देखी और थोड़ा सा तेल अपने हाथों में लेकर अपने लंड महाराज की सेवा करने लगा।

लगभग एक घंटे के बाद गेट पे किसी के आने की आहट हुई। मैंने बाहर निकल कर झाँका तो पाया कि रिंकी अपने हाथों में कुछ किताबें और एक हाथ में एक छोटी सी पोलीथिन लटकाए घर के अन्दर दाखिल हुई। मैंने गौर से उसके हाथ में लटके पोलीथिन को देखा तो एक बड़ी सी ट्यूब थी वीट क्रीम की ! टी वी पे कई बार इस क्रीम के बारे में देखा था।

मेरी आँखों में एक चमक आ गई, मैं समझ गया कि आज रिंकी रानी अपनी मुनिया को चिकनी करने वाली है। मैं इस ख्याल से ही सिहर गया और उसकी झांटों भरी चूत को याद करके यह कल्पना करने लगा कि जब उसकी चूत चिकनी होकर सामने आएगी तो क्या नज़ारा होगा।

रिंकी ने मुझे देखकर एक सवालिया निगाहों से कुछ पूछना चाहा पर कोई शब्द उसके मुँह से बाहर नहीं आये। और वो मुस्कुराते हुए सीढियाँ चढ़ गई और अपने घर में चली गई। शायद वो सोच रही थी कि पप्पू मेरे कमरे में है और थोड़ी देर में उसकी चुदाई लीला चालू हो जाएगी। लेकिन उसे क्या पता था कि आज तो उसका यार शहर में था ही नहीं।

मेरे दिमाग में एक शैतानी भरा ख्याल आया और मैंने पूरी प्लानिंग कर ली। मैंने ठान लिया कि आज पप्पू की कमी मैं पूरी करूँगा।

मैं इस ख्याल से खुश होकर वापस अपने कमरे में घुस गया और अपने मनपसंद साईट पे चिकनी चिकनी चूत की तस्वीरें देखने लगा। मेरा लंड खड़ा होकर सलामी देने लगा।

मुझे पता था कि रिंकी सीधा अपने बाथरूम में घुसेगी और अपनी चूत की सफाई करेगी। इस सब में उसे कम से कम आधा घंटा तो लगना ही था। मैंने भी जल्दी नहीं की और आराम से वक़्त बीतने का इंतज़ार करता रहा।

थोड़ी देर में रिंकी अपने बालकनी में आई जो मेरे कमरे की खिड़की से साफ़ दिखाई देता है। अब तक उसने अपने कपड़े बदल लिए थे और एक हल्के गुलाबी रंग का टॉप पहन लिया था। नीचे का कुछ दिख नहीं रहा था इसलिए समझ में नहीं आया कि नीचे क्या पहना है।

खैर, उसे देखकर मैं समझ गया कि उसने अपना काम पूरा कर लिया है और अब वो अपने प्रीतम का इंतज़ार कर रही है।

थोड़ी देर वहाँ खड़े रहने के बाद वो अन्दर चली गई।

अब मैंने अपने धड़कते दिल को संभाला और हिम्मत जुटा कर अपने कमरे से बाहर निकल कर सीढ़ियों से ऊपर चढ़ने लगा। मेरे मन में ये ख्याल चल रहे थे कि किस तरह से इस मौके का फायदा उठाया जाए। मुझे इतना तो विश्वास था कि आज रिंकी पूरी तरह से मानसिक रूप से अपनी चूत में लंड लेने के लिए तैयार है। बस उसे थोड़ा सा उत्तेजित करने की जरुरत है फिर वो खुद बा खुद अपनी टाँगें फैला कर लंड का स्वागत करेगी।

मैं ऊपर पहुँच गया और हॉल में जाकर रिंकी को आवाज़ लगाई। रिंकी वहीं सोफे पे बैठी थी और टी वी पर फिल्म देख रही थी।

मुझे देख कर उसने स्माइल दी और मेरे पीछे देखने लगी। उसे लगा शायद पप्पू मेरे पीछे पीछे आ रहा होगा। लेकिन किसी को न देख कर उसका चेहरा थोड़ा सा उदास हो गया।

“आओ, सोनू…बैठो। कुछ काम था क्या?” बड़े भोलेपन से रिंकी ने मुझसे पूछा।

“हाँ जी, आपको एक सन्देश देना था। इसीलिए आपके पास आना पड़ा।” मैंने मुस्कुराते हुए कहा और उसके बगल में जाकर सोफे पे बैठ गया। हम दोनों एक बड़े से सोफे पे एक एक किनारे पे एक दूसरे की तरफ मुड़कर बैठ गए।

मैं गौर से रिंकी की आँखों में देख रहा था और मुस्कुरा रहा था। रिंकी भी एकटक मुझे देखे जा रही थी फिर उसने चुप्पी तोड़ी,”हाँ बोलो, कुछ बोलने वाले थे न तुम…?”

“हाँ, असल में तुम्हारे लिए एक बुरी खबर है। पप्पू को अचानक किसी जरुरी काम से रांची जाना पड़ा इसलिए वो आज नहीं आ सकता।” मैंने पप्पू का नाम लेते हुए उसे आँख मारी।

रिंकी मेरी इस हरकत से थोड़ा शरमा गई और पप्पू के बाहर जाने की बात सुनकर थोड़ा उदास हो गई।

“अरे चिंता मत करो, मैं हूँ ना !! तुम्हें बोर नहीं होने दूँगा।” इतना कहते हुए मैं थोड़ा सा सरक कर उसके करीब चला गया। अब हमारे बीच महज कुछ इंच का ही फासला रह गया था।

“वैसे आज तुम बहुत खूबसूरत लग रही हो।” मैंने उसके ऊपर अपना जाल डालते हुए कहा।

“क्यूँ, आज से पहले कभी नहीं लगी क्या?” रिंकी ने अपनी तारीफ सुनकर थोड़ा सा लजाते हुए मुझे उलाहना देने के अंदाज में पूछा।

“ऐसी बात नहीं है, असल में कभी तुम्हें उस नज़र से देखा नहीं था लेकिन आज तो तुम्हारे ऊपर से मेरी नज़र ही नहीं हट रही है।”मैंने एक लम्बी सांस लेते हुए उसका हाथ पकड़ लिया और उसकी आँखों में बिना पलकें झपकाए देखने लगा।

“हाँ जी…आपको फुर्सत ही कहाँ है जो आप मेरी तरफ देखोगे। तुम्हारी आँखें तो आजकल किसी और को देखती रहती हैं।” रिंकी ने दिखावटी गुस्सा दिखाते हुए कहा।

“यह क्या बात हुई, मैंने कभी किसी को नहीं देखा यार…मेरे पास इतना वक़्त ही कहाँ है।” मैंने कहते हुए उसके हाथों को अपने हाथों से सहलाने लगा।

“अब बनो मत…मेरे पास भी आँखें हैं और मुझे भी सब दिखता है कि आजकल साहब कहाँ बिजी रहते हैं…” रिंकी ने इस बार मुझे आँख मारी।

मैं समझ गया कि वो बीती रात की बात कर रही है। मैं थोड़ी देर के लिए चुप सा हो गया लेकिन उसकी तरफ देखता ही रहा।

“बड़े थके थके से लग रहे हो, रात भर सोये नहीं क्या?” रिंकी ने मेरी आँखों में देखते हुए पूछा।

“मेरी छोड़ो, तुम अपनी बताओ…लगता है तुम्हें रात भर नींद नहीं आई…शायद किसी का इंतज़ार करते करते बेचैन हो रही होगी रात भर, है न?” मैंने उल्टा उसके ऊपर एक सवाल दगा और उसके हाथ को धीरे से दबा दिया।

उसने मेरी तरफ देखा और मुस्कुराते हुए एक ठण्डी सांस भरी…

“अपनी आँखों के सामने वो सब होता देख कर किसी नींद आएगी।” रिंकी ने अब मेरे जांघ पर अपने दूसरे हाथ से एक चपत लगाते हुए कहा और फिर अपने हाथ को वहीं रहने दिया।

मैंने उस वक़्त एक छोटी सी निकर पहनी हुई थी जो कि मेरे जांघों के बहुत ऊपर तक उठा हुआ था। जब रिंकी ने अपने हाथ रखे तो वो आधा मेरे निकर पे और आधा मेरी जांघों पे था। मेरी टांगों पे ढेर सारे बाल थे। रिंकी ने अपनी उँगलियों से थोड़ी सी हरकत करनी शुरू कर दी और मेरे जांघों को धीरे धीरे सहलाने लगी।

मेरी तो मानो मन की मुराद ही पूरी हो रही थी। मैं मन ही मन खुश हो रहा था यह सोच कर कि अब मुझे ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ेगी। मैं अब सीधा आगे बढ़ सकता था लेन मैंने उसे छेड़ने के लिए अनजान बनते हुए पूछा,”ऐसा क्या देख लिया तुमने जो तुम्हें रात भर नींद नहीं आ रही थी। वैसे मुझे पता है कि तुम असली बात छुपा रही हो, असल में तुम पप्पू का इंतज़ार कर रही थी और …”

कहानी जारी रहेगी…

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प्रकाशित : 15 मार्च, 2013