मेरा गुप्त जीवन- 22

मेरा गुप्त जीवन- 22

मैंने अपना पायजामा खोला और खड़े लंड को उसकी चूत पर टिका दिया।
तभी देखा कि उसने भी झट से अपनी टांगें पूरी खोल कर फैला दी जिस वजह से मुझ को लंड को उसकी चूत में डालने में कोई दिक्कत आई।

मैं लंड डाल कर धीरे धीरे धक्के मारने लगा, मेरा हिलना बस ना के बराबर था, धीरे से लंड अंदर और फिर धीरे से बाहर।
कोई 10 मिनट बाद उसका शरीर एकदम अकड़ा और वह पानी छोड़ बैठी।
मैं भी चुपके से उस के ऊपर से उतरा और उसके ऊपर पहले धोती और चादर ठीक कर दी और आ कर अपने बिस्तर पर लेट गया और जल्दी ही मैं सो गया।

सवेरे उठा तो बसंती चाय ले कर खड़ी थी और मेरे पायज़ामे की तरफ घूर रही थी। जब मैंने पायज़ामा देखा तो वो तम्बू बना हुआ था और मेरा लौड़ा एकदम अकड़ा खड़ा था, बिना शर्म किये वो मेरे लंड को घूर रही थी।

मैंने झट से चादर को अपने खड़े लंड पर डाल दिया और उसके हाथ से चाय ले ली और उसकी तरफ देखा तो वो मंत्रमुग्ध हुई चादर में छिपे मेरे लंड को ही देख रही थी।
मैं समझ नहीं पा रहा था कि वो ऐसे क्यों कर रही थी। फिर सोचा शायद उस को रात का चुदना याद है और वो आगे बात करना चाहती है।
लेकिन वो बिना कुछ कहे खाली कप लेकर चली गई।

दिन में हम कॉटेज चले गये, सोचा था कि ज़रा आराम कर लेंगे। हम बैठे ही थे कि दरवाज़ा खटका और खोला तो देखा कि वहाँ चंदा खड़ी थी और अंदर आने को उतावली हो रही थी।
अंदर आते ही उसने मेरा लंड पकड़ लिया पायजामे के ऊपर से ही उसका हाथ लगते ही लंड जी तो खड़े हो लगे फड़फड़ाने।

लंड का यह हाल देख कर चंदा ने झट से अपनी साड़ी उतार दी और जल्दी से पेटीकोट भी निकाल दिया और मुझको लिटा कर मेरे ऊपर चढ़ बैठी।
वो ऊपर से ज़ोर ज़ोर से धक्के मारने लगी और मुझको मम्मों को दबाने के लिए उकसाने लगी।
मैं भी मौके की गर्मी में बह गया और चंदा के सुन्दर शरीर को प्यार से चोदने लगा।

10-15 मिन्ट में वो दो बार छूट गई और छूटते वक्त उसने ऊपर से मुझको कस कर जकड़ लिया अपनी बाँहों में। तब वो नीचे आ गई और मुझको ऊपर से चोदने के लिए उकसाने लगी लेकिन मैं भी इस पोज़ से उकता गया था और उसको घोड़ी बना कर चोदने लगा। और फिर बहुत सारे धक्के मारने के बाद मैंने अपनी पिचकारी उसकी चूत के आखरी हिस्से तक ले जाकर छोड़ दी।
मुझको पक्का यकीन था कि मेरा वीर्य उसके गर्भाशय में ज़रूर गिरा होगा।
ऐसा लगा कि चंदा पूरी तरह से निहाल गई।

मैं उठा और एक शरबत का गिलास बना कर उसको पकड़ा दिया और वो शरबत पीकर फिर से चुदवाने के लिए तैयार हो गई और जैसे कि मेरी आदत है, मैं उसको इंकार नहीं कर सका और उसको फिर एक बार चोद दिया।
वो जल्दी से कपड़े पहन कर वहाँ से चली गई।

मैं तो उस समय वाली चुदाई को भूल गया लेकिन बुखार के ठीक होने के बाद आई बिन्दू ने बताया कि वो चंदा तो बहुत खुश होकर गई उस दिन… कह रही थी वो ज़रूर गर्भवती हो गई होगी।

उस रात मैं बसंती को चोदने के मूड में नहीं था। इसलिए मैं उसके कमरे में आने से पहले ही सो गया लेकिन रात को मेरी नींद खुली तो देखा कि बसंती मेरे साथ ही सोई है, उसका एक हाथ मेरे खड़े लंड पर था और दूसरे से वो अपनी चूत को रगड़ रही थी।
उसकी आँखें बंद थी, पेटीकोट भी ऊपर उसके पेट पर आया हुआ था और उसकी पतली लेकिन एकदम मुलायम जाँघें हिल रही थीं।

जब उसने महसूस किया कि मेरा लंड बिल्कुल खड़ा है तो वो मेरे ऊपर बैठ गई और मेरे लंड को चूत में डाल दिया। मैं भी सोने का बहाना करता रहा और चुपचाप लेटा रहा, बसंती ही सारी मेहनत करती रही।
लेकिन हैरानगी इस बात की थी कि वो अभी भी आँखें बंद कर के यह सारा काम कर रही थी। उसकी चूत से बहुत पानी निकल रहा था और वो पूरी तरह से बेखबर मेरी चुदाई में मस्त थी।
जब वो पूरी तरह से चुदाई में थक गई तो वो अपने आप उतर गई मेरे ऊपर से और जा कर अपने बिस्तर पर सो गई।

अगले दिन बिन्दू काम पर आ गई और नई लड़की को देख कर भड़क गई।
मैंने उसको शांत किया और कहा- आज रात में तुमको एक तमाशा देखने को मिलेगा।

रात में बिन्दू बहुत कमज़ोरी महसूस कर रही थी इसलिए उसकी यौन के लिए कोई उत्सकता नहीं थी। बिन्दू चटाई बिछा कर उस पर लेट गई और थोड़ी देर बाद बसंती आई और दूसरी चटाई बिछा कर उस पर लेट गई और मेरी तरफ देखने लगी।

मुझ को लगा कि वो मुझे कुछ कहना चाहती है शायद लेकिन मैं चुपचाप लेटा रहा और फिर न जाने कब मेरी नींद लग गई।
थोड़ी देर बाद मैंने महसूस किया कि कोई मेरे साथ आकर लेट गया है। मैंने हाथ लगा कर देखा तो वही बसंती ही थी।
मैंने नाईट लाइट में देखा वो धोती ब्लाउज उतार कर एकदम नंगी थी। आते ही उसने मेरा लंड खड़ा कर लिया और फिर मेरे ऊपर चढ़ गई और खुद ही अंदर डाल कर धक्के भी मारने लगी और बिन्दू बेचारी सोई रही। उसको पता ही नहीं चला कि बसंती मुझ को चोद रही थी और वो भी आँखें बंद करके।

मुझको यह समझ नहीं आ रहा था कि बसंती यह चुदाई का काम सोये हुए कर रही थी या फिर सोने का नाटक कर रही थी।
मैं आज बसंती को झकझोड़ कर जगाना चाहता था लेकिन फिर सोचा कि कल बिन्दू को यह सब दिखा कर पता लगाएंगे कि वो ऐसा क्यों कर रही है।
बसंती अपना दो बार छूटा कर कपड़े पहन कर अपनी चटाई पर सो गई।

सुबह उठा तो देखा, सिर्फ बसंती सोई है और बिन्दू बाहर जा चुकी है।
थोड़ी देर बाद वो मेरी चाय लेकर आ गई।
मैंने उससे हाल पूछा तो वो बोली- अब ठीक है।
फिर मैंने बसंती की तरफ इशारा किया और बताया- कल रात इस लड़की ने मुझको चोद डाला। साली बहुत तेज़ लगती है। तुम इसको जगाओ और बाहर जाने को कहो।

बिन्दू ने बसंती को जगाया और उसे लेकर बाहर चली गई।
बाद में जब वो आई तो मैंने उसको सारी बात बताई।
वो भी हैरान थी।
फिर हम दोनों ने फैसला किया कि रात को उसको पकड़ेंगे।

रात को बिन्दू मेरा दूध का गिलास लेकर आई और आँख से इशारा किया बसंती आ रही है।
तब बिन्दू अपनी चटाई बिछाने लगी, कुछ देर बाद बसंती भी आ गई और बिन्दू उससे बातें करने लगी। मैं भी दूध पीकर सोने का बहाना करने लगा।
दोनों लड़कियाँ भी अपने बिस्तरों पर लेट गई, थोड़ी देर बाद वो दोनों भी गहरी नींद में सो गई।
मैं और बिन्दू जाग रहे थे लेकिन आँखें बंद थी। तभी मैंने महसूस किया कि बसंती अपने बिस्तर से उठी है और मेरे बेड के निकट आई है।

वो गौर से मेरे चादर से ढके लंड को देखती रही और साथ में मुड़ कर बिन्दू को भी देख रही थी।
कुछ क्षण बाद वो अपने बिस्तर पर वापस लौट गई और सोई बिन्दू को देखने लगी। फिर धीरे से उसने अपना एक हाथ बिन्दू की चादर में डाल दिया और धोती के ऊपर उसकी चूत में फेरने लगी।
बिन्दू ने एक आँख खोल कर मुझको देखा, मैंने आंख मार कर उसको इशारा किया कि ‘करने दो वो जो कर रही है।’
बिन्दू भी बगैर हिले डुले लेटी रही।

आँख बंद किये ही बसंती ने बिन्दू की चादर और फिर धोती ऊपर उठा दी और अब आँख खोल कर उस की बालों भरी चूत देखने लगी और फिर उसने अपना मुंह बिन्दू की चूत पर लगा दिया।
बिन्दू अब आँख खोल कर इस चुसाई का आनन्द लेने लगी।
पहले बसंती धीरे से चूस रही थी और फिर उसने चुसाई की स्पीड तेज़ कर दी। ऐसा करते हुए उसके चूतड़ हवा में लहरा रहे थे और उस का पेटीकोट चूतड़ के ऊपर आ गया था।

वो चुसाई का काम इतना मग्न होकर रही थी कि उसको पता ही नहीं चला कब मैं अपने बिस्तर से उठा और उसकी गांड के ऊपर अपना खड़ा लंड टिका दिया।
फिर मैंने धीरे से लंड उसकी चूत पर रख कर एक ज़ोर का धक्का मारा कि मेरा लंड झट से उसकी चूत की गहराइयों में चला गया और उसकी गीली और बेहद गर्म चूत का आनन्द लेने लगा।
नीचे हम दोनों के बीच लेटी बसंती ने बिन्दू की चुदाई की स्पीड बढ़ा दी।
उधर बिन्दू भी पूरे जोश में थी और खूब आनन्द ले रही थी उसकी चूत की चुसाई का।

सबसे पहले बिन्दू सबसे नीचे एकदम अकड़ कर झड़ गई और फिर बसंती भी थोड़ी देर में झड़ गई।
रह गया मैं… तो मैंने भी ज़ोर ज़ोर से पीछे से धक्के मार कर कर बसंती की चूत में अपना फव्वारा छोड़ दिया।
तीनों अलग अलग होकर लेट गए।

बिन्दू ने बसंती से पूछा- यह तुम क्या कर रही थी बसंती?
वो एकदम हैरानी से बोली- मैं क्या कर रही थी? बताओ तो?
‘अरे तुम हम दोनों के साथ चुदाई कर रही थी न? तुमको नहीं पता क्या?’
‘नहीं, जब मैं सो जाती हूँ तब मुझ को कुछ याद नहीं रहता कि मैं क्या कर रहीं हूँ!’

‘ऐसे कैसे हो सकता है? तुमने पहले मेरी चूत की चुसाई की और फिर छोटे मालिक ने तुमको पीछे से चोदा, क्या तुमको नहीं पता?’
‘नहीं बिल्कुल नहीं पता!’
वह रोने वाली हो गई थी और बड़ी मासूमियत से हम दोनों को देख रही थी।
फिर उसने अपने नंगे शरीर को देखा और बड़ी दर्दभरी आवाज़ में बोली- मुझको कुछ याद नहीं कि मैंने क्या किया था आप दोनों के साथ!

हम दोनों हैरान थे कि यह कैसे हो सकता है? लेकिन बसंती नहीं मान रही थी, वो बार बार यही कह रही थी कि उसको कुछ भी नहीं याद कि उसने क्या किया था।
हम दोनों सोच में पड़ गए।
बसंती का व्यव्हार काफी चौंकाने वाला था।

थोड़ी देर बाद हम तीनों सो गए, सवेरे उठे तो बसंती कमरे में नहीं थी।
बाद में पता चला वो बड़ी मालकिन को बता कर नौकरी छोड़ गई थी।
कहानी जारी रहेगी।
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