लाजो का उद्धार-2

लाजो का उद्धार-2

रेशमा ठठाकर हँस पड़ी- पतिव्रता!’ और चुटकी ली- और तुम पत्नीव्रता वाह वाह…’
फिर गंभीर होकर बोली- मैंने देखा है, वह तुम्हें किस नजर से देखती है।’
‘उसने तुमसे ऐसा कुछ कहा?’
‘सब कुछ कहा नहीं जाता।’

‘तुम्हें भ्रम हो रहा होगा। उसका पति कैसा भी हो, वह ऐसा हरगिज नहीं चाह सकती।’
‘मैंने कब कहा वह चाहती है, वह तो मैं देखूँगी।’

मैंने उसका हाथ पकड़ा- जानेमन, मैं तुम्हीं में बहुत खुश हूँ, मुझे और कोई नहीं चाहिए।’

वह अजब हँसी हँसी। वह व्यं‍ग्य थी कि सिर्फ हँसी मैं समझ नहीं पाया। मुझे डर लगा। लगा कि वह मेरे चेहरे के पार मेरे मन में लाजो के प्रति पलती कामनाओं को देख ले रही है। मैंने छुपाने के लिए और मक्खन मारा- जानेमन, मैं तुम्हें पाकर बेहद खुशकिस्मत हूँ। मैं तुम्हें, सिर्फ तुम्हें ही चाहता हूँ।’ और मुलम्मा चढ़ाने के लिए मैंने चूमने को मुँह बढ़ाया, पर…

वह धीरे से हाथ छुड़ाकर उठ खड़ी हुई।

‘अगर भगवान ने बेहद खूबसूरत जवान साली दी हो तो ऐसा कौन सा होशोहवास वाला मर्द होगा जो उसे भोगना न चाहेगा?’

वह ठोस बोल्ड आवाज कमरे की शांति में पूरे शरीर, मन और आत्मा तक में गूंज गई।

बाथरूम में फ्लश की आवाज के कुछ क्षणों बाद वह प्रकट हुई।
‘बोलो!”

मैं सन्न था। पतंगे की तरह छिपने की कोशिश करती मेरी लाजो की कामना एकदम से उसकी सच्चाई के चिमटे की पकड़ में आकर छटपटा रही थी।
फिर भी मैं मुस्कुरा पड़ा।

मेरी हट्टी-कट्टी पत्नी का यह बेलौस जाटण डायलॉग उसकी कद-काठी के अनुरूप ही था। इस डायलॉग के साथ ही लाजो के साथ सोने की सम्भावना जैसे एकदम सामने आकर खड़ी हो गई, जैसे हाथ बढ़ाकर उसे पकड़ लूँगा।
मेरी बीवी चमत्कार करने में सक्षम थी। मुझे कोई फिक्र नहीं हुई कि लाजो कैसे मेरे पहलू में आएगी।

वह मेरे पास आई और मेरे सिर पर हाथ फेरा।
‘मैं जानती हूँ तुम उसे चाहते हो!’
मैंने अपने सिर पर घूमते उसके हाथ को खींचकर चूम लिया।

वह हँस पड़ी- यू आर सो क्यूट!’ उसने कान पकड़कर मेरा सिर हिलाया- मुझसे छिपना चाहते हो?’
मैंने उसे बाहों में घेर लिया।
लाजो ही अब मेरे हर पल हर साँस में होगी।

और तभी:

‘तुम चाहती हो आज रात मैं तुम्हारे पास आ जाऊँ?’ लाजो ने अपनी बड़ी बहन से पूछा- आज की रात मैं कोई किताब पढ़कर काटने के लिए सोच रही थी। तुम जानती हो अकेले नींद नहीं आती।’

रेशमा ने मोबाइल का स्पीकर ऑन कर रखा था। लाजो की आवाज से महसूस हुई उसकी नजदीकी ने दिल की धड़कन बढ़ा दी। वैसे तो जब रेशमा ने उसे आने का प्रस्ताव किया तभी से मेरा अंग उत्तेजित हो रहा था।

‘यहाँ मैं तुम्हें तुम्हारे जीजाजी के पास सुला दूँगी।’ रेशमा ने मुझे आँख मारी।
”धत्त, क्या बोलती हो?’

‘तुमसे मिले कई दिन हो गए, आज दोनों बहनें मिलकर ढेर सारी बातें करेंगी।’

‘और जीजाजी?”
‘वे ऑफिस की एक पार्टी में जा रहे हैं, रात को देर से लौटेंगे। कल छुटटी ही है, इसलिए चिंता नहीं।’
‘ठीक है, मैं जल्दी आऊँगी।’
‘आधे घंटे में आ जाओ।’
‘इतनी जल्दी? ठीक है आठ बजे तक आती हूँ।’

चुदने को आ रही औरत की उत्तेजक आवाज! भोली को क्या मालूम हमने उसके लिए क्या योजना बनाई थी। घड़ी में सवा सात बज रहे थे। काले बालों के झुरमुट में छिपी गुलाबी वैतरणी पैंतालीस मिनट में प्रकट होने वाली थी। वैतरणी को पार कराने वाली मेरी नैया पैंट में जोर जोर हिचकोले खाने लगी।

‘तैयार हो जाओ मैन, योर टाइम इज कमिंग।’ रेशमा की आवाज गंभीर थी।

हमने घर व्यवस्थित किया, सोफे पर नया कवर डाल दिया। आज मेरी साली कोई सामान्य रूप से थोड़े ही आने वाली थी। आज तो उसका जश्न होगा। पलंग पर एक खूबसूरत नई चादर बिछाई, सिरहाने एक झक सफेद तौलिया रख लिया। उसके निकलने वाले प्रेमरसों की छाप लेने के लिए। अगर वो अनछुई, अक्षतयौवना होती तो उसकी सील टूटने के रक्त की छाप भी ले लेता।

मेरी आतुरता दिख जा रही थी और मैं यह सब पत्नी की योजना होने के बावजूद मन में शर्मिन्दा हो रहा था। मुझे रेशमा के चेहरे पर खेलती हँसी के पीछे एक व्यंग्य दिख रहा था लेकिन उसमें साथ में एक निश्चय की दृढ़ता भी थी।

सबकुछ तैयार करके हमने एक दूसरे को देखा। पंद्रह मिनट बच रहे थे, किसी भी क्षण आ सकती थी।

रेशमा ने लाजो को फोन लगाया- कहाँ हो?’

वह रास्ते में थी और पाँच मिनट में पहुंचने वाली थी।

रेशमा ने मुझे देखा- योर टाइम हैज कम। मुझे लगता है अब तुम शॉवर में चले जाओ और उसके लिए तैयार रहो।’

लाजो ने तीन बार घंटी बजाई पर दरवाजा नहीं खुला। उसने धक्का दिया। दरवाजा खुल गया। भीतर कोई नहीं था। उसने ‘दीदी! दीदी!’ की आवाज लगाई, उत्तर नहीं आया, बेडरूम में झाँका, खाली था, अटैच्ड बाथरूम में शॉवर चलने की आवाज आ रही थी।

‘दीदी नहा रही हैं।’

वह बिस्तर पर बैठ गई और उसके बाहर आने का इंतजार करने लगी। बेड पर एकदम नया चादर देखकर खुश हुर्इ, दीदी मुझे कितना मानती है। सिरहाने रखी पत्रिकाओं को उलटा-पलटा, दो तीन इंडिया टुडे और गृहशोभा के बीच में अंग्रेजी डेबोनेयर का एक ताजा अंक था।

हमारा अंदाजा था अकेले में वह जरूर उसे ही देखेगी।

उसके कवर पर एक कमर में छोटी तिकोनी गमछी लपेटे टॉपलेस मॉडल की तस्वीर थी।

‘दीदी-जीजाजी भी काफी रंगीनमिजाज हैं।’ पन्ने पलटती हुई वह बुदबुदाई।

मैंने अनुमान लगाया कि अब तक नहाने के लिए पर्याप्त समय बीत चुका है। मुझे दरवाजे की घंटी सुनाई पड़ चुकी थी, यानि लाजो आ चुकी थी।
अब अगर वह बेडरूम में होगी तो बिस्तर पर ही बैठी होगी। अकेली लड़की के सामने नंगे जाना दुस्साहस था। पर यही योजना का पहला चरण था। मैंने मन को कड़ा किया और शॉवर बंद किया और स्टैंड से तौलिया खींच लिया…

बाथरूम खोलकर मैं सिर पर तौलिया डाले बालों को पोंछता बेडरूम में सीधा बिस्तर की दिशा में चला आया। बिस्तर पर उसकी आकृति नजर आई पर उसे मैं अनदेखा करता हुआ किनारे रखी मेज पर से अपना कपड़ा उठाने के लिए घूम गया…

लाजो डेबोनेयर देख रही थी। मॉडलों की सेक्सी तस्वीरें, पाठकों के सेक्स अनुभव, अमरीका में मिस न्यूड प्रतियोगिता, धारावाहिक सेक्स कहानी।
यह सब उसे बेहद आकर्षित कर रहे थी। उसका पति ऐसी चीजें नहीं लाता था। शादी के पहले सहेलियों के साथ उसने कुछ मैग्जीन्स देखे थे, पर शादी के बाद ये चीजें मुहाल हो गईं।

शॉवर बंद होने की आवाज सुनकर उसने अनुमान लगाया अब दीदी निकलेंगी। सोचा जब तक दीदी तैयार होकर निकलेगी तब तक जल्दी से थोड़ा और देख लूँ। तभी उसने बाथरूम से बाहर आती तौलिए से सिर ढकी नंगी पुरुष आकृति देखी। उसके पेड़ू के नीचे अर्द्धउत्थित विशाल लिंग चलने से हिल रहा था।

उसने तुरंत नजर हटा ली, भय से वहीं पर गड़कर रह गई।

‘बाप रे!’ लाजो बाथरूम में लौटती उस पुरुष आकृति के कसे नितंबों को देखती बुदबुदाई। चलने से उसमें गड्ढे बन रहे थे। ऊँची काया, चौड़ी पीठ, मजबूत कमर, कसी जाँघें! क्या शरीर था! उसका झूलता हुआ हल्का उठा आश्चर्य जगाता ‘कितना बडा!’ लिंग तो जैसे दिमाग में छप गया।

अपने आप में आकर उसने नजर घुमाई। गोद में खुली डेबोनेयर में एक नंगी मॉडल उसकी ओर देखकर मुस्कुरा रही थी।

उसने झट से किताब बंद कर दी और दूसरी पत्रिकाओं के नीचे दबा दिया। उठकर ड्राइंग हॉल में चली आई और सोफे पर बैठकर धड़कनों को शांत करने और सांसों पर नियंत्रण पाने की चेष्टा करने लगी।

‘तुम आ गई! मैं दो मिनट के लिए बगल वाली के पास गई थी।’ रेशमा अंदर घुसते हुए और दरवाजा बंद करती हुई बोली- तुम्हें इंतजार न करना पड़े इसलिए दरवाजा खुला छोड़कर गई थी।’

और अवसरों पर स्वा‍भाविक यह होता कि लाजो उठकर बड़ी बहन के गले मिलती, पर आज वह बैठी रह गई। उसका उड़ा-उड़ा चेहरा साफ पकड़ में आ रहा था। रेशमा समझ गई चाल कामयाब हुई है, तीर निशाने पर लगा है।

‘तुम ठीक तो हो न?’

‘मैं… अँ.

ऽ. अँ.ऽ. अँ.ऽ… ठीक हूँ। लगता है गर्मी है।’ वह दुपट्टे से पंखा करने लगी।

‘हाँ, गर्मी तो है, ठण्स पानी या कोकाकोला लाऊँ?’

‘कोकाकोला…’

रेशमा कमरे में आई। मुझे देखकर मुस्कुराई।

‘लगता है कुछ देख लिया है उसने!’ वह फ्रिज का दरवाजा खोलकर बोतल निकालने लगी।

‘कुछ नहीं, पूरा का पूरा देखा है!’ मैं घमंड से बोला।

‘तैयारी में दिख रहे हो, बल्ले बल्ले!’ उसने मेरे पतले सिल्क पजामे को पकड़कर शरारत से नीचे खींचा। अंदर खड़े लिंग की पूरी रूपरेखा स्पष्ट नजर आ रही थी।

‘मेरी बेचारी बहन के बचने की कोई संभावना नहीं।’ उसने नकली हमदर्दी में मुँह बनाया।

‘मुझे थोड़ा समय दो और फिर बाहर आ जाओ।’ कोकाकोला की बोतल लिए वह चली गई।

हॉल में जाकर उसने लाजो को पकड़ाया। लाजो तुरंत ग्लास लेकर एक बड़ा घूँट गटक गई।

‘तुम्हारे जीजाजी थोड़ी देर में निकलने वाले हैं। उनसे भेंट हुई कि नहीं?’

‘उँ..ऽऽ ..न.. न… नहीं तो!’

‘सचमुच?’ मैं भीतर आता हुआ बोला। मेरा प्रत्याशा में खड़ा लिंग झीने रेशमी पजामे के भीतर से पूरी तरह प्रदर्शित हो रहा था। मैं आकर उन दोनों के सामने खड़ा हो गया।

लाजो झूठ पकड़ा जान कर लजा गई। मुझे देखते ही उसकी नजर सीधे पजामे की ओर गई और नीचे झुक गई। मुझे लगा उसकी नजर वहाँ एक बटा दस सेकंड के लिए ठहरी थी। रेशमा को भी ऐसा लगा, वह गौर कर रही थी।

‘सुंदर है ना!’

लाजो ने प्रश्नवाचक दृष्टि उठाई।

‘पजामा!’ रेशमा ने मेरी कमर की ओर इशारा किया। वह लाजो को मुझे देखने का मौका दे रही थी। क्रीम कलर के झीने कपड़े के अंदर मेरा उत्तेजित लिंग पजामे को भीतर से बाहर ठेले हुए था। उसकी मोटी गुलाबी थूथन भी उसे दिख रही होगी।

‘कल ही खरीद कर लाई हूँ, अच्छा है ना?’

लाजो पसीने पसीने हो रही थी। दीदी उधर ही दिखा रही थी जिधर उसकी नजर भी नहीं उठ रही थी। जल्दी जल्दी से कुछ घूँट गटकी- अच्छा है। मुझे बड़ी गर्मी लग रही है।’

‘सुरेश, जाओ और भिगाकर फेस क्लॉथ ले आओ।

मैं वहाँ से चला आया।

‘जरा शरीर में हवा लगने दो।’ कहकर रेशमा ने उसके कंधे पर से साड़ी पिन खोलकर साड़ी का पल्लू पीठ के पीछे से खींचकर उसकी गोद में गिरा दिया। लाजो ने आँखें बंद कर ली और सोफे की पीठ पर लद गई।

मैं बर्फ के पानी से भिगोकर तौलिया ले आया। कंधे से साड़ी हटने के बाद लाजो के स्तनों से भरी ब्ला‍उज मादक लग रही थी।

‘यह लो!’ मैंने रेशमा को तौलिया पकड़ा दिया।

पानी चूते तौलिये को देखकर रेशमा मुसकुराई। लाजो मेरी आवाज सुनकर साड़ी से छाती ढकने का उपक्रम करने लगी।

रेशमा उसकी गर्दन पर तौलिया रखकर हल्के हलके दबाने लगी। उसने तौलिए के दोनों छोरों को सामने रखते हुए बीच का हिस्सा़ उसकी गर्दन में पहना दिया और दबा-दबाकर गर्दन, गले और नीचे की खुली जगह को पोंछने लगी।

‘आऽऽऽह!’ लाजो के मुँह से अच्छा लगने की आवाज निकली। उसकी आँखें बंद थीं। वह देख नहीं पाई कि तौलिए से चूता पानी उसके ब्लाउज और ब्रा को भिगा रहा है। पानी उसके कपड़ों के अंदर घुसकर पेट पर से चूता हुआ उसकी साड़ी के अंदर घुस रहा था।

जब उसको अपनी पैंटी के भीतर ठंडक महसूस हुई तो उसकी आँख खुली। पानी उसके भगप्रदेश के बालों से होता हुआ गर्म कटाव के अंदर उतर गया था और उसकी सुलगती योनि में सुरसुराहट पैदा कर रहा था।

‘मैं भीग गई हूँ।’
‘ओह, सॉरी!’ कहकर रेशमा ने उस पर से तौलिया उठा लिया।

भीगने से ब्लाउज इतनी चिपक गया थ कि भीतर की ब्रा का उजलापन साफ नजर आ रहा था और सामने निप्पलों की काली छाया तक का पता चल रहा था।
उन गोलाइयों को अनावृत देखने की इच्छा मन में उमड़ पड़ी। वह किसी कलाकार की रची तस्वीर सी लग रही थी, गोरेपन के कैनवस पर गुलाबी रंग से रंगी तस्वीर!
सिर्फ आधे कंधे और छातियों को ढकती गुलाबी कपड़े की परत, गुलाबी रंग के भीतर से प्रत्यक्ष होती उजली ब्रा की आभा! मचलते स्तन! ब्लाउज के नीचे सुतवें पेट की पतली तहें!

मैं मंत्रमुग्ध देख रहा था।

रेशमा ने उसकी गोद में पड़ी भीगी साड़ी के पल्लू के ढेर को उठाया और कहा- इसे खोल दो, एकदम भीग गई है।’

लाजो हड़बड़ाई- जीजाजी देख लेंगे।’

‘मैं चला जाता हूँ।’ मैं वहाँ से हट गया। बेडरूम के अंदर आकर दरवाजे की ओट से झाँकने लगा।

रेशमा उसको खड़ा करके साड़ी खींच रही थी। लाजो एक बार इधर सिर घुमा कर देखा कि मैं देख तो नहीं रहा हूँ।

साड़ी का ढेर नीचे पैरों के पास गिराकर रेशमा ने उसको एक बार भरपूर निगाह से देखा। जवानी की लहक भरपूर थी।

लाजो उसकी नजर से परेशान होती हुई बोली- ऐसे क्या देख रही हो?’

‘ब्लाउज से पानी चू रहा है। इसको भी उतार दो।’
‘नहीं, जीजाजी…’
‘जीजाजी कमरे में हैं, जल्दी कर लो।’

लाजो बदन ढकने के लिए भीगी साड़ी उठाने को झुकी। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं।

रेशमा बोली- वैसे ही ठहरो, भीगा हुआ खोलने में तुमको परेशानी होगी। मैं खोल देती हूँ।’ कहती हुई वह उसकी झुकी हुई पीठ पर से ब्लाउज के हुक खोलने लगी।

एक एक हुक खुलता हुआ ऐसे अलग हो जाता था जैसे बछड़ा बंधन छूटकर भागा हो। सारे हुक खोलकर उसने पीठ से ब्लाउज के दोनों हिस्सों को फैला दिया।
गोरी पीठ सफेद ब्रा के फीते की हल्की-सी धुंधलाहट को छोड़कर जगमगाने लगी। दोनों तरफ बगलों से चिपके ब्लाउज के पल्ले उलटकर अपने ही भार से उसकी त्वचा से अलग होने लगे।

रेशमा ब्रा के फीते में ऊँगली फँसाकर खींची- बाप रे, कितना टाइट पहनती हो!’ कहते हुए उसने ब्रा की हुक भी खोल दी।

‘अरे दीदी…’ लाजो जब तक आपत्ति करती तब तक हुक खुल चुकी थी और रेशमा ‘इसे क्या भीगे ही पहनी रहोगी?’ कहकर उसकी बात पर विराम लगा चुकी थी।

लाजो खड़ी हो गई। रेशमा ने झुककर साड़ी उठाई ओर उसके कंधों पर लपेटती हुई बोली- निकालकर दे दो।’

लाजो एक क्षण ठहरी। बड़ी बहन की आँखों की दृढ़ताभरी चमक थी। वैसे भी, हट्टी-कट्टी कद-काठी की रेशमा के सामने शर्मीली, मुलायम लाजो का टिकना मुश्किल था।

लाजो ने साड़ी के अंदर ही ब्लाउज और ब्रा को छातियों, कंधों और बाँहों पर से खिसकाया और निकालकर बहन की ओर बढ़ा दिया।

‘जानू!’ रेशमा ने मुझे आवाज लगाई।

कहानी जारी रहेगी।
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