सम्भोग से आत्मदर्शन-12

सम्भोग से आत्मदर्शन-12

इस कहानी के पिछले भाग में आपने पढ़ा कि तनु की मम्मी मुझे अपने जीवन की कहानी बता रही थी जिसमें उन्होंने अपनी सहेली को तीन मर्दों के साथ सेक्स करके देखा.
अब आगे:

कामुकता में कौशल कुंती का मुख चोदन जोरों से करने लगा और कहने लगा- आज तो मैं भी इस कुतिया की गांड चोदूंगा, साली अपने आशिक को ही गांड मारने देती है, मुझे और राणा जी को लंड बड़ा और मोटा होने का बहाना बताती है. आज तो हम तेरी गांड मार कर ही रहेंगे।

यह सुनते ही कुंती के चेहरे पर तनाव के भाव आ गये पर लंड मुंह में होने की वजह से वो कुछ बोल नहीं पाई और बस ना में सर हिलाने की कोशिश करती रही।

पर अब तीनों मर्द उस अप्सरा जैसी सुंदर बाला पर बेरहमी से टूट पड़े थे।

उधर नगाड़े की आवाज तेज हो रही थी, उसकी लय और स्वर किसी मादक गाने की तर्ज की ओर इशारा कर रहे थे, और कुंती उस लय से लय मिला कर अपनी चूत में लंड डालकर उछल रही थी, जिस मोटे लंड को देखकर ही डर के मारे मुझे पसीना आ रहा था उस मोटे लंड को मेरी सहेली ने इतनी सहजता से अपने अंदर समा लिया था कि मुझे वो कहावत याद आ गई ‘दिल दरिया, चूत समंदर, जितना डालो उतना अंदर!’

अब राणा जी कुंती को अजीब सा खींचने नोंचने लगे, कंपकंपाती आवाज में गाली भी बकने लगे- आहहह कुंती तू बड़ी मस्त चुदती है रे.. रंडी साली तेरी चूत की गर्मी किसी को भी पिघला सकती है, वाह रे कमीनी, मान गया तुझे! तू मेरे विकराल लंड से ऐसे चुदती है जैसे ये किसी बच्चे की लुल्ली हो!

और आहहह उहह की आवाजें बढ़ने लगी और फिर राणा जी थोड़ा छटपटा के शांत होने लगे। शायद वो चूत में ही झड़ गये थे क्योंकि उनका कामरस कुंती की जांघों पर बह आया था और शायद कुंती भी झड़ गई थी क्योंकि कामरस किसी सरिता की भांति बह रहा था और कुंती के शरीर में भी कंपकंपी और उत्तेजना भरी हरकत नजर आ रही थी.

कुंती के मुंह में कौशल का लंड फंसा था इसलिए वो कुछ बोल नहीं पा रही थी पर उउउँ उँउ करके गिंगिया रही थी, और उसके गुलाबी गालों पर खुशी और तृप्ति के आँसू ढलक आये थे। पर अभी रमेश का हुआ नहीं था, इसलिए कुंती ने अपनी हलचल रोक दी और राणा जी के ऊपर वैसे ही पड़ी रही।

इधर कौशल ने अपना लंड कुंती के मुंह से निकाला और रमेश के झड़ने का इंतजार करने लगा रमेश के धक्के तेज हो गये थे, शायद वो भी कुछ ही पलों में झड़ने वाला था पर कौशल को कुछ पल का भी सब्र नहीं हो रहा था होता भी कैसे ऐसे समय में भला कोई एक सेकंड भी रुकता है क्या?
उसने अपने हाथ से लंड हिलाना शुरू कर दिया और गाली गलौज के साथ कांपने लगा, अकड़ने लगा और उसने कुंती के बालों को एक हाथ से जोर से पकड़ लिया और कुंती ने अपनी जीभ बाहर निकाल कर आँखें बंद कर ली, अब यह स्पष्ट था कि कौशल के प्रिकम की बूँदों को या बारिश को कुंती पीना चाहती थी, यह भी स्पष्ट था कि कुंती इस प्रिकम की बूँदों को पहले भी पी चुकी है या कहूं तो उसकी अभ्यस्त थी। पर मुझे ये दृश्य वीभत्स लग रहा था फिर भी मैं दम साधे उन्हें देखती रही।

रमेश और कौशल लगभग एक साथ अपनी गति तेज करने लगे और अकड़ने लगे- ले संभाल कुतिया!
कहते हुए कौशल ने गाढ़ा वीर्य कुंती के मुंह में टपकाना शुरू किया पर कुंती ने कुछ ही बूँदों मुंह के अंदर लिया और बाकी रस को अपने चेहरे पर मलवाने लगी।

उसी समय रमेश ने अपना लंड कुंती की गांड से बाहर खींचा और तेज पिचकारी कुंती की गांड और पीठ पे दे मारी, रमेश का वीर्य थोड़ा पतला था पर बहुत सारा निकला और कुंती के कंधे को भी छू गया, वाकयी यह बहुत ही कामुक दृश्य था पर मेरे लिए लगातार इसे देख पाना संभव ना था क्योंकि ये सारी चीजें मेरी कल्पना से भी परे थी। इसलिए मैने अपनी आँखें उस वक्त बंद कर ली, मेरी आँखें इसलिए भी बंद हो गई क्योंकि मैंने अपनी चूत में दो उंगलियाँ पूरी अंदर तक घुसा रखी थी और अब कामुकता की वजह से तीसरी उंगली भी घुसाने का प्रयास कर रही थी।

पर मुझे मेरे शरीर के ऊपर किसी के हाथों का अहसास हुआ और मैं चौंक पड़ी, मेरी कमर को अपने दोनों हाथों से जकड़ कर मेरे पीछे खड़ा वो शक्स कोई और नहीं, वही आटो ड्राइवर था जिसने मुझे यहाँ छोड़ा था और उसके बगल में ही एक और काला कलूटा सा आदमी खड़ा था।

अब तक का देखा हुआ मजा डर और शर्म में बदल गया.

मैं क्या करूँ और क्या नहीं, सब कुछ मेरी समझ से परे हो गया, मैं उससे खुद को छुड़ाने का प्रयास करने लगी, हड़बड़ाने लगी और कब मेरे मुंह से चीख निकल गई पता ही नहीं चला।

इस हड़बड़ाहट के बाद क्या हुआ मुझे कुछ पता नहीं चला, बस कुछ देर में मैंने कुंती को वहां से कपड़ा पहन के बहुत तेजी से मुंह छुपा कर भागते देखा, शायद कुंती को पता ही नहीं चला कि यहाँ जो खड़ी सब कुछ देख रही थी वो उसकी सहेली सुमित्रा ही है।

और अंदर के तीनों मर्द बाहर हाल में हमारे पास ही आ गये।
तब आटो ड्राइवर ने कहा- राणा जी, इस लड़की ने जब मुझे यहाँ पर आटो रोकने को कहा और उतर कर आपके यहाँ आई तो मुझे थोड़ा शक हुआ और आप लोग भी ना राणा जी बाहर का दरवाजा भी तो बंद नहीं करते, और इस कुतिया ने भी दरवाजा बंद नहीं किया और आप लोगों का खेल का पूरा मजा इस खिड़की से लेती रही, मैं तो ‘दरवाजा थोड़ा खींच कर चला जाऊँगा.’ सोच कर आया था, मुझे पता है आप लोगों की रासलीला यहाँ होती रहती है। पर इस कुतिया को छुप कर देखते हुए देखकर मैं रुक गया।

राणा जी ने कहा- कोई बात नहीं, अब आज का अधूरा खेल ये कुतिया ही पूरी करेगी, ये ले तू ये रख और जा, राणा ने उस ड्राइवर को कुछ पैसे इनाम में दिए।
और मैं लगातार रो रही थी और वहाँ जाने देने की भीख मांग रही थी, मैं कुंती का परिचय भी नहीं बता पा रही थी, क्योंकि मेरे मन में डर था कि वो इन्हीं का ज्यादा साथ देगी क्योंकि मैंने उनकी चोरी छुप कर पकड़ ली थी। और दूसरी बात कुंती ने अभी मुझे देखा नहीं था इसलिए अभी कोई नहीं जानता था कि मैं कौन हूँ कहाँ से आई हूँ, मैं घर से कम ही निकलती थी इसलिए मुझे बहुत कम लोग ही जानते थे।

पर ड्राइवर ज्यादा कमीना निकला, उसने कहा- राणा जी, आपने आज तक जिस पर भी नजर डाली, हमने उधर आँख उठाना ही छोड़ दिया, हमने आपकी हर तरह से मदद करनी भी चाही, पर आज ये कुतिया धोखे से हाथ लगी है कम से कम इसका मजा तो हमें भी लेने दीजिए।

इतना सुनते ही मेरी गांड फट गई पहले से तीन मर्द थे और ये दो और है, मैं तो आज मर ही जाऊंगी।
कौशल ने ड्राइवर को कहा- साले, तेरी इतनी हिम्मत कि तू राणा जी से सौदा करे?
ड्राइवर सहम गया, पर राणा जी ने कौशल को शांत करते हुए कहा- कौशल रहने दे सही कह रहा है ये, कभी कभी इनको भी कुछ मिलना चाहिए। और ये तो खुद यहाँ मरवाने आई है तो हम क्या करें। चलो इसे अंदर लाओ और ऐश करो।

मैं गिड़गिड़ा उठी, मैं घुटनों पर आ गई और राणा के पैर पकड़ लिए- मुझे छोड़ दीजिए, मैं माँ बनने वाली हूँ, यहाँ जो हुआ उसे मैं किसी से नहीं कहूँगी।
पर वहाँ कोई मेरी कुछ नहीं सुनने वाला था और इस स्थिति में मेरे मस्त उरोज पास खड़े लोगों को और ललचाने लगे।
मेरा रो-रो कर बुरा हाल था, मैं डर के मारे फड़फड़ाने लगी। मैं फिर राणा के पैरों में गिर पड़ी और उससे अपनी रिहाई की विनती करने लगी।

तब राणा ने एक गहरी लंबी सांस भरी और कहा- ठीक है रे.

. कुतिया मैं तुझे नहीं चोदूँगा, तेरी जैसी हजार लौंडिया खुद मेरे लंड के लिए मरती हैं। पर ये सब तेरे साथ क्या करेंगे, वो यही लोग जाने, ऐसे भी मेरा काम एक बार हो गया है मैं यहाँ से जा रहा हूँ।

मैं राणा से पूर्ण रिहाई की मांग कर रही थी पर इस बार राणा ने मेरी एक ना सुनी और कपड़ा पहन कर जाते हुए आटो ड्राइवर से कहा ध्यान रहे- ये चुदाई करते करते मर ना जाये, और इसे चुदाई के बाद सही सलामत घर के बाहर तक छोड़ देना।
सबने हाँ कहा, और वो चले गये।

उसके बाद मेरे साथ क्या हुआ वो तुम समझ सकते हो. किसी तरह मैं घर आकर अपने कमरे में चले गई, सबने डांटने का प्रयास किया, पर माँ ने सबको चुप करा दिया, कमरे का दरवाजा लगा कर मेरे पास आकर बैठ गई और मुझे गले से लगा लिया, और कहा कुछ गलत हुआ है क्या बेटी तुम्हारे साथ।
मैंने कुछ नहीं कहा.. बस माँ की बांहों में सर रख कर रोने लगी। एक माँ ही तो होती है जो बेटी के बिना कहे भी सब कुछ समझ लेती है।
माँ ने कहा- रो मत बेटी, और तुझे कुछ कहने की जरूरत भी नहीं है, बस ये बता दे कि कल थाने और डॉक्टर दोनों के पास जाना है या सिर्फ डॉक्टर के पास?

माँ की इन बातों ने मुझे बहुत हौसला और राहत दी पर मैंने कहा- सिर्फ डॉक्टर के पास जाना है माँ!

और दूसरे दिन माँ ने मुझे खुद डॉक्टर के पास ले जाकर दिखाया, मैंने डॉक्टर को भी आधी अधूरी ही बात बताई, उसने मुझे कुछ दवाईयाँ दी और कहा- बच्चा भी सुरक्षित है।
मुझे इसी बात की ज्यादा फिक्र थी। असला में मुझे गर्भवती जान कर उन सबने मेरे साथ पीछे से ही किया था.

हम घर आ गये पर ये किस्सा मुझे सताते रहा। मुझे कई दिनो तक शौच करने में दिक्कत होती रही।
यह घटना होली के चार दिन पहले हुई थी। और इस घटना के बाद मैंने घर के बाहर भी कदम नहीं रखा था, मैं कुछ ही दिनों में वहाँ से वापस अपने ससुराल आ गई। मैंने अपनी चूत ना चुदवा कर अपनी इज्जत बचा ली थी, पर इस सदमे से उबरने में मुझे काफी वक्त लग गया।

उस समय छोटी मेरी कोख में थी और शायद उसी वजह से छोटी का भी सेक्स के प्रति इतना ज्यादा डर है। और उस पर उसके साथ बाबा ने जो किया, उस घटना ने उसे पागल बना दिया।
संदीप अब तुम ही बताओ कि छोटी को कैसे ठीक किया जाये। क्योंकि अपनी दोनों बेटियों के अच्छे या बुरे के लिए मैं स्वयं को जिम्मेदार समझती हूँ।

कहानी जारी रहेगी….
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