अक्सर हम जब कठिनाइयों के दौर से गुजर रहे होते हैं , तो लगता है की भाग्य का ये काला सफ़र शायद ख़त्म ही नहीं होगा. कमला का जीवन भी एक ऐसे ही सफ़र की कहानी है. उसने कभी भी खुद को टूटने नहीं दिया. बस जीवन की धारा के साथ खुद को बहाती चली. फिर वो वक़्त भी आया जब उसने वो चाहा जो किसी स्त्री की पूर्णता के लिए सबसे आवश्यक होता है……
पूरा कमरा उफ्फ्फ….आआह्ह्ह्ह….सीईईइ…..इस्स्स्स…की कामुक सिस्कारियों से गूँज रहा था. हर धक्के के साथ कमला की सित्कारें और बढती जा रही थीं. इन्दर का फौलादी लंड कमला की नाजुक चूत में अपनी दमदार उपस्थिति दर्ज करा रहा था. उसके हाथ कमला के स्तनों को मसले जा रहे थे और होठों की नूराकुश्ती दोनों के शरीर में ऊर्जा का संचार कर रही था. अचानक से धक्कों में और तेजी आ गयी और कमला का यौन पात्र इन्दर के अमृत से भर गया.
लेकिन ये क्या कमला की आखों में आंसू थे. पर ये आंसू ख़ुशी के थे. इन्दर बिना कुछ कहे वहाँ से जा चुका था. फिर भी कमला अपनी चारपाई पे आखों में आंसू लिए अपनी पिछली जिन्दगी की यादों में खोयी हुयी थी.
कमला की माँ उसके बचपन में ही गुजर चुकी थी. उसकी अपनी माँ के मरते ही पिता ने दूसरी शादी कर ली थी. सौतेली माँ उसपे हाथ तो नहीं उठाती थी पर शायद उसे हाथ उठाने की जरूरत भी नहीं थी. इस कृत्य के लिए वो कमला के बाप को ही उकसाती थी. कमला का शराबी बाप उसे बेइंतहा पीटता. वजह? वजह तो बेवजह थी, और एक बिन माँ की बच्ची को पीटने के लिए एक शराबी बाप बेवजह को ही वजह बना लेता है.
जब कमला मात्र 13 वर्ष की थी, एक दोपहर को उसने वो देखा जो उसे नहीं देखना चाहिए था. उसका पडोसी महेंद्र जो रिश्ते में उसका चाचा लगता था, उसकी सौतेली माँ के कमरे घुस गया. कमला ने ज्यादा ध्यान नहीं दिया. क्योंकि महेंद्र का आना आम बात थी. वो अक्सर कमला के बाप के न रहने पे कमला के घर आता. महेंद्र की बीवी तपेदिक की मरीज थी और ज्यादातर समय बीमार ही रहती थी. महेंद्र का बेटा इन्दर कमला से 3 वर्ष बड़ा था. 1 इन्दर ही था जिससे कमला कभी-कभी अपने मन का दर्द बता पाती.
उस दिन कमला अपने घरेलू कामों में व्यस्त हो गयी. लेकिन कुछ ही मिनटों के बाद उसने अपनी सौतेली माँ मोहिनी की हँसी और फिर हल्की चीख सुनी. कमला कौतुहल वश खिड़की से देखने लगी. अन्दर का नजारा उसकी कल्पना से परे था. मोहिनी अपने बिस्तर पे घोड़ी बनी हुयी थी. उसकी गोल मटोल गोरी और बड़ी गांड कमला को दिख रही थी जिसपे महेंद्र थपकी दे रहा था. फिर उसने देखा की महेंद्र का बड़ा सा लंड मोहिनी की गांड की छेद में घुस रहा है. मोहिनी एक हाथ से अपनी चूत को रगड़ रही थी और महेंद्र अपने लंड से उसकी गांड मार रहा था.
कमला को लगा कि उसका चाचा उसकी सौतेली माँ को मार रहा है. वो खिड़की से ही चिल्लाई – चाचा! मेरी माँ को छोड़ दो.
मोहिनी और महेंद्र की नजर एक साथ कमला पे पड़ी और वो दोनों हडबडा गए. मोहिनी ने तुरंत अपनी साड़ी नीचे की और बहार आकर कमला का चुप कराते हुए बोली- चुप कर! वरना फिर तेरे बाप से तुझे पिटवाउंगी.
कमला को जैसे झटका लगा. उसने सोचा वो तो अपनी माँ को बचाना चाहती थी. फिर माँ उसे ही क्यों डांट रही है?
मोहिनी ने डांटकर कमला को चुप तो करा दिया था लेकिन अन्दर ही अन्दर उसे डर भी लग रहा था. इसलिए उसने महेन्द्र को कुछ दिन तक न आने के लिए कह दिया. महेंद्र को गुस्सा तो बहुत आया लेकिन उस समय वो वहां से चला गया.
उस दिन कमला की पिटाई नहीं हुयी. शाम की कमला ने इन्दर से सारी बात बता दी. इन्दर तुरंत समझ गया की उसके बाप और कमला की सौतेली माँ के बीच चक्कर चल रहा है. लेकिन वो मन मसोस कर रह गया.
दिन गुजरते रहे जैसे जैसे कमला और इन्दर की पवित्र दोस्ती प्रगाढ़ होती जा रही थी वैसे-वैसे महेन्द्र और मोहिनी की रंगरलियाँ भी बढती जा रही थी. लेकिन अब कमला 15 की हो चुकी थी और उसे भी अपने चाचा और सौतेली माँ का ये खेल समझ में आने लगा था. लेकिन बाप की मार और सौतेली माँ के डर से वो किसी से कुछ न कहती.
अब तक कमला के यौन उभार भी आकर्षक होते जा रहे थे. इन्दर भी एक बालिग युवक के रूप में विकसित हो रहा था. जवानी रंग तो दिखा रही थी लेकिन उनका प्रेम दैहिक नहीं था.
इधर अब महेंद्र की नजरें भी कमला के प्रति बदल रही थीं. अब जब भी वो घर आता कमला के अर्धविकसित यौवन का अपनी आखों से भरपूर रसपान करता. मोहिनी भी ये सब ताड़ रही थी. एक दिन महेंद्र ने मोहिनी से कह ही दिया की वो कमला को भी कली से फूल बनाना चाहता है. चाहे इसके लिए उसे कुछ भी करना पड़े.
मोहिनी ने महेंद्र से 15000 रुपयों की मांग रखी. महेंद्र ने 10000 रूपये तक देने की बात कबूल ली. वो जानता था की एक बार की चुदाई के बाद वो कई बार कमला के जिस्म से अपने पैसे वसूल लेगा. महेंद्र ने पैसे मोहिनी को दे दिए.
शनिवार को कमला का बाप शहर जाने वाला था तो महेंद्र और मोहिनी ने उसी दिन कमला की चुदाई का प्रोग्राम बनाया. जैसे ही कमला का बाप नागेन्द्र घर से निकला, थोड़ी देर बाद महेंद्र कमला के घर आ गया. कमला ने आज पीले रंग की चोली और हरे रंग का लम्बा घाघरा पहना हुआ था. महेंद्र का तो मन कर रहा था की अभी वो कमला को चोद दे. लेकिन उसने खुद पे सब्र रखा. वो मोहिनी के कमरे में पहुंचा. अन्दर मोहिनी भी सजी संवरी तैयार बैठी थी. महेंद्र के अन्दर आते ही वो महेन्द्र को चूमने लगी. महेन्द्र ने कहा- का बात है रानी? आज तो तुम भी बड़ा अफनाई हुयी हो.
मोहिनी ने एक कातिल मुस्कान फेरी और बोली- मैं तो बस तुम्हें तैयार कर रही थी.
और कहकर उसने तुरंत महेंद्र की लूंगी खोल दी और उसका लंड मुँह में लेकर चूसने लगी.
महेंद्र का लंड अब पूरी उत्तेजना में आ चुका था अब उसे चूत की जरूरत थी. उसने मोहिनी से कमला को बुलाने को कहा. मोहिनी ने खिड़की से ही आँगन में काम करती कमला को आवाज दी. लेकिन उसके आने के पहले मोहिनी ने भी अपने सारे कपड़े उतार दिए और बिस्तर पे जाकर महेंद्र के बगल में बैठ गयी. कमला कमरे में आई, लेकिन कमरे का नजारा देखकर मुँह घुमा कर खाड़ी हो गयी और मोहिनी से कहा- माँ आपने बुलाया था?
मोहिनी ने कहा- मैंने तो तुझे नहीं बुलाया.
ये कहकर वो नंगी ही कमला के पास आ गयी और उसकी पीठ को बड़े प्यार से सहलाते हुए बोली- कमला मैं जानती हूँ की तुझे ये सब देखने का बड़ा मन करता है, इसीलिए तू बहाने से यहाँ चली आई. ताकि हम दोनों को तू नंगा देख सके. ख़ास तौर से अपने चाचा का लंड देख सके. है न?
कमला- नहीं माँ! ऐसी घिनौनी बातें मात कीजिये. मैं जाती हूँ.
मोहिनी ने कमला की चोटी पकड़ ली. कमला की चीख निकल पड़ी. मोहिनी गरजी- अब जब तूने हमारे नंगे शरीरों को देख लिया है, तुझे भी अपना शरीर बिना कपड़ों के हमें दिखाना होगा.
कमला- नहीं माँ ! ऐसा मत कहो. मुझे जाने दो. मैं किसी से कुछ नहीं कहूँगी.
मोहिनी ने एक बहुत डरावनी हंसी हसी. उसने कहा – देख कमला! चुदेगी तो तू वैसे भी. लेकिन यदि तुमने अपने कपड़े खुद उतार दिए तो हो सकता है आज तेरी चुदाई न होकर कल हो.
कमला की आखों से आंसू निकलने लगे. मोहिनी ने कहा- चल एक खेल खेलते हैं. मैं जो जो कपड़े पहनूंगी तू वही कपडा उतार देना.
ये कहकर मोहिनी ने अपनी बड़ी चूचियों को अपने ब्लाउज के अन्दर कैद कर लिया. कमला ने भी न चाहते हुए अपनी चोली उतार दी. उसके नीम्बू के आकार के मम्मे देखकर महेंद्र की लार टपकने लगी. इधर मोहिनी ने अपनी साडी पहन ली और कमला को अपना घाघरा उतारने का इशारा किया. तभी अचानक से कमला के बाप नागेन्द्र की आवाज गूंजी वो अचानक से वापस आ गया था, शायद उसकी बस छूट गयी थी. मोहिनी, महेंद्र और कमला को काटो तो खून नहीं. घर के अन्दर का ये नजारा देखकर नागेन्द्र गुर्राया- ये क्या हो रहा था यहाँ?
महेंद्र – दददद….देखो न भैया! तुम्हारी बेटी क्या कर रही है??? मम्म…मैं इसकी बाप की उम्र का हूँ और ये मेरे साथ क्या करना चाहती है.
मोहिनी तुरंत से महेंद्र का खेल भाँप गयी. और उसकी हाँ में हाँ मिलाती हुए बोली – हाँ देखो न! कमला के बापू! इस लड़की पे कितना जवानी का जोश चढ़ा है. अच्छा हुआ तुम आ गए. लो देख लो अपनी बेटी की करतूत.
उधर कमला अचानक से रंग बदलते इन गिरगिटों की हरकतों से अवाक् खड़ी थी. शरीर का उपरी हिस्सा पूर्ण नग्न लिए अब कमला को अपने बाप का सामना करना था. नागेन्द्र ने कमला की चुटिया पकड़ ली और लगभग घसीटते हुए उसे कमरे में ले गया और बोला- बहुत चढ़ा है न जवानी का जोश! आज मैं शांत करता हूँ तेरी ये प्यास.
कमरे का दरवाजा बंद कर नागेन्द्र ने अपनी ही बेटी का उस दिन रेप कर डाला. एक महीने के अन्दर ही कमला का ब्याह पास के गाँव के अर्धविकसित दिमाग वाले रमेश से कर दिया गया. रमेश का एक हाथ भी लूला था. इन्दर तो बस तेजी से घटते इस घटनाक्रम का एक मूक हिस्सा बन कर ही रह गया.
कमला का ब्याह होने के बाद महेंद्र और मोहिनी की रंग रलियाँ और बढ़ गयीं. अब तो मोहिनी महेन्द्र के घर में भी जाकर उसकी लंड का रसपान करती. एक दिन दोनों नंगे ही चारपाई पे लेटे हुए थे, और बातें कर रहे थे. इस बात से बेखबर की इन्दर भी घर में पहले से ही छिपा हुआ है और उनकी बातें सुन रहा है.
मोहिनी- महेन्द्र! हम दोनों के रास्ते के सारे कांटे तो निकल गए. ये मेरा बुड्ढा पति कब निकलेगा?
महेन्द्र- मेरी जान काँटा खुद नहीं निकलता. निकालना पड़ता है.
मोहिनी- जैसे हमने कमला नाम का काँटा निकाला?
महेन्द्र- नहीं! कमला तो कली थी, जिसे मैं फूल बनाना चाहता था. लेकिन ऐन वक़्त पर ये बुड्ढा आ गया और खुद हाथ साफ़ कर गया.
मोहिनी- फिर तुमने कौन सा काँटा निकाला?
महेंद्र- इन्दर की माँ के नाम का! साली के इलाज में बहुत पैसे खर्च हो रहे थे और किसी काम की भी नहीं रह गयी थी. इसीलिए मैंने उसे मार दिया.
मोहिनी चौंकी- क्या बात कर रहे हो??? तुमने इन्दर की माँ को मारा?
महेन्द्र- हाँ! गला घोंट दिया था….स्स्साली….क..
अभी अपनी बात महेंद्र पूरी भी नहीं कर पाया था की इन्दर ने एक भरपूर हथौड़े के वार से महेंद्र का काम तमाम कर दिया.
इन्दर को हालातों के मद्देनजर अपने पिता की हत्या के जुर्म में 3 साल की जेल हो गयी.
इधर कमला ने अपने मानसिक रूप से विकलांग पति की सेवा में खुद को व्यस्त कर लिया. रमेश भी कमला को एक पल के लिए भी अकेला न छोड़ता. धीरे- धीरे साल दर साल बीतने लगे. कमला का यौवन अब पूर्ण विकसित हो चुका था. उसके गोल गोल मम्मे चोली के ऊपर से ही सारे बांके नौजवानों के आकर्षण का केंद्र बने रहते. उसकी बलखाती कमर न जाने कितने दिलों को घायल कर रही थी. लेकिन उसकी जवानी उसके किसी काम नहीं आ रही थी. रमेश को सेक्स नाम की चिड़िया का क ख ग…भी नहीं पता था और न ही उसकी कोई सम्भावना थी. कमला रात में पूरी नंगी होकर कई बार रमेश के लंड को सहला कर या चूस कर उसे उत्तेजित करने का प्रयास करती. लेकिन रमेश पे इसका कोई प्रभाव न होता.
अब कमला को सिर्फ एक संतान की आशा थी की काश! किसी तरह वो रमेश के बच्चे की माँ बन जाती तो अपना पूरा जीवन अपनी उस संतान के भरोसे काट देती. लेकिन शायद किस्मत को ये भी मंजूर नहीं था.
उधर इन्दर भी जेल से छूट गया था और साल भर बाद उसकी शादी भी हो गयी थी. वो भी अपनी खेती किसानी में व्यस्त हो गया था. शहर जाकर अनाज वो खुद बेच कर आता. ऐसे ही एक दिन जाब वो शहर जाने के लिए बस में सवार हुआ तो अचानक उसकी नजर बस में बैठी कमला पे पड़ी. दोनों की नजरें मिली और एक क्षण में ही दोनों के मन में उनका पिछला जीवन घूम गया. कमला ने मुस्कुरा कर इन्दर से अपने पति का परिचय कराया. बस से उतर कर इन्दर ने कमला से पूछा- शहर किस लिए आई हो? रमेश की मानसिक अवस्था का इलाज कराने?
कमला ने उदासी से कहा- नहीं! इसके लिए डॉक्टर सालों पहले जवाब दे चुके हैं.
इन्दर- फिर किस लिए?
कमला ने सवाल टालते हुए कहा- इन्दर! सालों बाद मिले हो! चाय नहीं पिलाओगे?
वो तीनों एक रेस्टोरेंट में जाकर बैठ गए. वहां ज्यादा भीड़ नहीं थी. रमेश का भोलापन इन्दर को भी अच्छा लगा. लेकिन जैसे ही उसे याद आया उसने फिर कमला से पूछा- तुमने बताया नहीं, शहर किस लिए आई हो?
इस बार कमला की आखों में आंसू आ गए. उसने इन्दर से कहा- इन्दर अब मेरे जीवन में ज्योति मेरी संतान ही ला सकती है. लेकिन मेरी फूटी किस्मत देखो! मेरी ये ख्वाहिश भी अधूरी ही रह जाएगी.
इन्दर ने कमला का हाथ पकड़ लिया और बोला- कमला! ऐसे मत रो!
पास बैठा रमेश भी कामला को चुप कराने लगा. कमला के चेहरे पे रमेश की हरकत देखकर मुस्कान आ गयी और इन्दर का भी मन भर आया.
शहर से लौटते समय भी तीनो साथ आये. रास्ते में इन्दर ने प्रस्ताव रखा- कमला! क्या मैं तेरी ये कमी पूरी कर दूं?
कमला नाराज हो गयी. फिर रास्ते भर उसने इन्दर से कोई बात नहीं की. बस से उतर कर दोनों अपे अपने गाँव चले गए. फिर महीनों तक कोई किसी से नहीं मिला. लेकिन कमला के अन्दर की इच्छा धीरे- धीरे उसका दम घोंट रही थी.
सर्दियाँ आ गयीं थी. एक दिन शाम को अचानक इन्दर ने कमला के दरवाजे पे दस्तक दी. इन्दर को यूँ देखकर कमला ने उसे अन्दर आने को कहा. कुछ देर की ख़ामोशी के बाद इन्दर ने बताया की उसकी पत्नी का भी देहान्त हो गया है और वो हमेश के लिए इस मनहूस गाँव को छोड़ कर जाने वाला है. लेकिन जाने से पहले वो उसके जीवन में आई एक मात्र ख़ुशी से मिल कर जाना चाहता था.
कमला को ये जानकार बड़ा दुःख हुआ. वो रो रही थी. इन्दर भी रो रहा था. अचानक से रमेश आया और उन दोनों के आंसू पोछता हुआ बोला- तुम दोनों एक दुसरे को क्यां रुलाते हो? उस दिन भी रुलाया था आज भी रुला रहे हो. मैं तो सिर्फ तभी रोता हूँ जब मेरा कोई खिलौना खो जाता है. है न कमला?
कमला ने कहा – हाँ! और मुस्कुरा दी.
रमेश ने फिर कहा- इन्दर तुम भी कमला के लिए खिलौना ला दो. वो चुप हो जाएगी. बोलो लाओगे न? लेकिन जब तुम खिलौना लाना तो मेरे लिए भी लाना. मैं भी उससे दिन रात खेलूंगा.
इन्दर और कमला एक दुसरे का मुँह देखने लगे.
रात हो रही थी. कमला ने रमेश को खाना खिला दिया था और अब रमेश सो रहा था. कमला ने इन्दर के लिए खाना परोस दिया. इन्दर चुप चाप खाना खा रहा था. कमला भी चुप थी. दोनों खामोश थे लेकिन दोनों के अन्दर एक तूफ़ान मचा हुआ था. दोनों ने खाना ख़त्म कर लिया और हाथ मुँह धोकर बैठके में पड़ी चारपाई पे बैठ गए. चुपचाप….शांत….एक गहरी ख़ामोशी चारों ओर छाई थी.
अचानक कमला उठी और इन्दर के पीठ के पीछे घूम कर चली गयी. फिर उसने धीरे से कहा- इन्दर! तुम चले जाओ! यहाँ से दूर जाकर एक नयी दुनिया बसाओ. जीवन चाहे कितना भी कठोर क्यों न हो, उसे जीने की चाह नहीं छोडनी चाहिए. जाओ और एक नयी शुरुवात करो.
इन्दर ने कहा- कमला! इतने सब के बाद भी जाने क्यों चित्त शांत हो चुका है. अब हिमालय की ओर जाना चाहता हूँ. जाने क्यों अब कोई दुःख भी नहीं होता. है तो सिर्फ एक टीस….जो रह रह कर सीने में उठती है कि मैं चाह कर भी तुम्हारा साथ न निभा पाया. तुम्हारे लिए कुछ नहीं कर पाया…
कह कर इन्दर शांत हो गया और अपने दोनों हाथों से अपने चेहरे को ढँक लिया. कमला वापिस घूम कर इन्दर के सामने आई. उसने इन्दर के हाथों को उसके चेहरे से हटाया. इन्दर की आखें बंद थीं और बंद पलकों के किनारों पे आंसुओं के मोती चमक रहे थे.
कमला ने इन्दर का हाथ अपने हाथों में लिया और धीरे से कहा- इन्दर अपनी आखें खोलो!
इन्दर ने अपनी आखें धीरे-धीरे खोलीं. लेकिन ये क्या उसके सामने निर्वस्त्र कमला खड़ी थी. जीवन में पहली बार. उसने चेहरा घुमा लिया लेकिन कमला ने वापिस उसका चेहरा अपनी ओर किया और बोली- इन्दर! मुझे मेरा खिलौना दे दो. और यहाँ से चले जाओ.
इन्दर ने एक बार कमला की ओर ऊपर से नीचे देखा. वो कांपते अधर…फिर सुराहीदार गर्दन जिसमे काली मोतियों वाला मंगलसूत्र था. फिर उसकी नजरें और नीचे कमला के उन्नत स्तनों पे गयीं. दोनों भरी-पूरी चूचियों के बीच मंगल सूत्र का लॉकेट फँसा हुआ था. फिर पेट की सपाट घाटी से इन्दर की निगाहें फिसलती हुयी कमला की सुदर्शना नाभि पे गयी. उसके नीचे कमला की थोड़ी उभरी योनी थी. जो कमला की मांसल जांघों के मध्य छिपी हुयी थी.
इन्दर आगे बढ़ा और कमला ने आखें बंद कर ली. उसने कमला को घुमा कर उसकी पीठ अपनी ओर कर ली. कमला की गर्दन पे एक किस करते हुए इन्दर उसकी पीठ चूमने लगा. कमला की सिस्कारियां निकलने लगीं. इन्दर ने भी अपने शरीर से एक एक कपडा अलग कर दिया. कमला का यौवान उसके लंड में पहले ही तनाव पैदा कर चुका था. उसने कमला के भारी नितम्बों के बीच की घाटी से अपना लंड चिपका दिया.
कमला सिहरन के मारे खड़ी भी नहीं हो पा रही थी. इन्दर ने उसे अपनी गोद में उठा लिया और चारपाई पे लिटा दिया. इन्दर ने कमला के ऊपर आकर उसके अधरों (होठों) का रसपान करना शुरू कर दिया. कमला के जीवन का ये पहला चुम्बन था और शायद आखिरी भी. वो इस अनमोल अनोखे क्षण को पूरा जीना चाहती थी.
इन्दर कमला के स्तनों को चूमते हुए उसकी जाँघों के बीच आ गया और अपने होठों से कमला की चूत चूसने लगा. अचानक से इन्दर ने आसन बदल दिया और उल्टा होकर अपना लंड कमला के होठों से सटा दिया और स्वयं कामला की चूत का रसपान करने लगा. कुछ ही देर बाद कमला का योनी रज बह निकला.
अब इन्दर कमला के होठों को अपने होठों से चूसने लगा. कमला पे फिर से मदहोशी छाने लगी. कमला तड़पने लगी और इन्दर के लंड को पकड़ कर अपनी चूत पे दबाने लगी. इन्दर ने कमला की दोनों टांगों को फैलाया और एक जोरदार धक्के से अपने लंड को कमला की चूत में प्रवेश करा दिया. कमला की चीख निकल गयी और वो इन्दर को अपने ऊपर से हटने के लिए धक्का देने लगी. लेकिन इन्दर उससे अलग नहीं हुआ. बस ऐसे ही पड़ा रहा और उसके होठों को चूसता रहा. कुछ देर बाद जब कमला का दर्द कुछ कम हुआ तो इन्दर ने फिर से अपने लंड की हलचल शुरू की.
अब कमला को असीम सुख मिल रहा था. अब हर धक्के का जवाब कमला भी अपने नितम्बों को उछाल कर दे रही थी. जब दोनों का ये देह यज्ञ समाप्त हुआ तब तक दोनों अपना स्खलन कर चुके थे. इन्दर ने अपना वीर्य कमला की योनी के अन्दर ही छोड़ दिया था और कमला के कहेनुसार वहां से चला गया था अपनी जीवन की दूसरी यात्रा पे.
कुछ ही महीनों के बाद कमला और रमेश को उनका खिलौना मिल चुका था. नाम था “इन्दर”.